साध्वी चंद्रिकाश्री जी के प्रति आध्यात्मिक उद्गार

साध्वी चंद्रिकाश्री जी के प्रति आध्यात्मिक उद्गार

अर्हम्
साध्वी काव्यलता 

तेरापंथ धर्मसंघ एक नंदन वन है। चित्त समाधि का रमणीय उपवन है। इस उपवन का हँसता खिलता एक पुष्प था। साध्वीश्री चंद्रिकाश्री जी जो एक कला प्रिय, स्वाध्याय प्रिय, श्रमशील, मिलनसार साध्वी थी। वे भाग्यशाली थी जिन्हें निरंतर गुरु सन्‍निधि में रहने का दुर्लभ अवसर प्राप्त हुआ। शासनश्री साध्वी जिनप्रभा जी के तन के कपड़े की तरह, छाया की तरह रहकर उनके हर कार्यों में सदा सहयोगी बनी रही। उनके रहने से साध्वीश्री जी तो निश्‍चिंत थी पर साथ वाली सभी साध्वियाँ भी निश्‍चिंत थीं। उनका व्यवहार बड़ा मधुर था। तत्त्व ज्ञान में विशेष रुचि रखने के कारण सैकड़ों-सैकड़ों युवती बहनों को तत्त्व ज्ञान से जोड़ा। साधु जीवन में काम आने वाली कलात्मक चीजों का निर्माण भी बड़ी सफाई से करती। उनका बाह्य व्यक्‍तित्व भी अच्छा था। चैन्‍नई गुरुदेव के चातुर्मास में मैंने उन्हें निकटता से देखा वे अपने दायित्व के प्रति बड़ी जागरूक साध्वी थी। साध्वी चंद्रिकाश्री जी ने आने वाली असाध्य बीमारी को समता से सहन किया। साध्वी समाज के लिए एक आदर्श प्रस्तुत कर उन्होंने अपने मरण को ज्योतिर्मय बना लिया। उनकी आत्मा शीघ्र ऊर्ध्वारोहण को प्राप्त करें, यही काम्य है।