संस्कार युक्‍त शिक्षा से अच्छी पीढ़ी का निर्माण हो सकता है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

संस्कार युक्‍त शिक्षा से अच्छी पीढ़ी का निर्माण हो सकता है : आचार्यश्री महाश्रमण

इंद्रगढ़, 9 दिसंबर, 2021
अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण जी लाखेरी से 11 किलोमीटर विहार का इंद्रगढ़ स्थित राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय पधारे। इंद्रगढ़ का तेरापंथ से भी संबंध जुड़ा है। मुनि हेमराज जी, मुनि जीतमल जी के जीवन से इंद्रगढ़ के प्रसंग जुड़े हैं। मुनि जीतमल जी का प्रथम चातुर्मास इंद्रगढ़ में हुआ था। बाद में मुनि जीतमलजी तेरापंथ के अधिशास्ता बन गए थे। तेरापंथ के एकादशम इंद्र आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हम सब इंसान हैं, मानव हैं। मानव जन्म को दुर्लभ बताया गया है। यह हमारी आत्मा भाग्य के योग से मनुष्य जन्म को प्राप्त करती है। मनुष्य जन्म तो मिल गया, अब इस मनुष्य जन्म को कैसे सार्थक, सफल, सुफल बनाया जाए। कोई भी प्राणी एक दिन जन्म लेता है, जीवन जी कर अवसान को प्राप्त हो जाता है। आदमी एक विशेष प्राणी है, आदमी को विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए कि मेरा जीवन कैसे सार्थक हो। कई मनुष्य महात्मा-साधु बन जाते हैं। गृहस्थ में भी जीते हैं। पर पुण्योदय से साधु बन जाते हैं। हमारे धर्मसंघ में कितने-कितने साधु हुए हैं। उनमें से कई आचार्य भी बन जाते हैं। हमारे प्रथम आचार्य परम पावन आचार्य भिक्षु थे। चौथे आचार्य जयाचार्य हुए हैं। वे बालावस्था में ही साधु बन गए थे। पूरा परिवार दीक्षित हो गया था। वे प्रज्ञा-पुरुष जयाचार्य के नाम से प्रसिद्ध हुए थे। उनकी बड़ी दीक्षा इंद्रगढ़ में हुई थी। उनका भारमल जी स्वामी से गुरु-शिष्य का संबंध हो गया था। पूज्य रायचंदजी स्वामी से उनके दो संबंध थे। एक तो वे दीक्षा-दाता थे। दूसरा संबंध उत्तराधिकार प्रदाता भी थे। ये घटना लगभग 208 वर्ष पुरानी इंद्रगढ़ की है। जयाचार्य एक विशेष ज्ञानी आचार्य थे। जयाचार्य के बाल मुनि के समय की नाटक वाली घटना को समझाया। हमारे बाल मुनि जयाचार्य की तुलना कर सके अच्छी बात है, उनके जीवन से एकाग्रता की शिक्षा लें। मुनि जीतमल जी न्यारा में खूब विचरे थे। मुनि हेमराज जी के आचार्यश्री भारमल जी के दर्शन करने का प्रसंग समझाया कि अगवानी, लौखानी का कैसा संबंध थे। मुनि हेमराज जी के सिंघाड़े में 12 वर्ष रहे थे। जयाचार्य महान साहित्यकार बन गए। भगवती की जोड़ राजस्थानी भाषा का विशाल पद्यात्मक ग्रंथ है। वे तत्त्ववेत्ता-ज्ञानपुंज आचार्य थे। विद्या-शिक्षा के क्षेत्र में वे खूब आगे बढ़े थे। भारत में कितने विद्यालय हैं। विद्यालयों में आधुनिक विद्या के साथ कुछ अध्यात्म विद्या, जीवन विज्ञान का भी प्रशिक्षण दिया जाता रहे ताकि शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार आ जाएँ। शिक्षक तो एक निर्माता होता है। ज्ञान के साथ अच्छे संस्कारों का निर्माण करने का भी प्रयास होता रहे। संस्कार युक्‍त शिक्षा से अच्छी पीढ़ी का निर्माण हो सकता है। विद्यार्थी अच्छा नागरिक बनकर रहे, यह एक घटना से समझाया कि बालक कुसंस्कारों में न जाएँ। मैं श्रीमद् जयाचार्य का ध्यान करता हूँ। पूज्य आचार्यश्री भारमल जी का यह 200वाँ महाप्रयाण वर्ष है। उनसे जुड़ा यह क्षेत्र है। मैं आचार्यश्री भारमल जी को भी अभिनंदन-अभिवादन करता हूँ। पूज्यप्रवर ने शिक्षकों, विद्यार्थियों एवं स्थानीय लोगों को अहिंसा यात्रा के सूत्रों को समझाया, उन्हें स्वीकार करवाए। पूज्यप्रवर के स्वागत में स्थानकवासी समाज, पारसमल जैन, महावीर हरकारा, (दिगंबर जैन समाज), सुरेंद्र हरकारा, सुनीता जैन, राकेश जैन ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि गुरुदेव के प्रवचन से हमारा जीवन बदल सकता है।