हम जीवन परमात्म पद पाने के लिए जीएँ : आचार्यश्री महाश्रमण
डिडायच, 17 दिसंबर, 2021
शांतिदूत महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी मौसम की प्रतिकूलता की परवाह किए बिना 13 किलोमीटर का विहार कर बनास नदी के तट पर बसे डिडायच गाँव स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय पधारे। जिन शासन के प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि एक प्रश्न होता है कि हम जीवन क्यों जीएँ? यह जीवन तो हमें मानो प्रकृति से मिल गया है। 84 लाख जीव योनियाँ हैं, उनमें मनुष्य की भी योनियाँ हैं। मनुष्य जीवन थोड़ा विशेष होता है। जीवन तो अनेक जीवों का भी होता है, पर आदमी साधना करके परमात्मा पद को प्राप्त कर सकता है, दूसरे जीव नहीं। यह मानव जीवन महत्त्वपूर्ण है और दुर्लभ भी है। जो महत्त्वपूर्ण होता है, वह थोड़ा दुर्लभ भी हो सकता है। मनुष्य के पास दिमाग भी है। वह सोचता है, चिंतन करता है, कल्पना करता है। दूसरे जीवों में विकास कम होता है। मनुष्य-मनुष्य के विकास में भी तारतम्यता रहती है। जन्म लेना, जीवन जीना और मर जाना ये दुनिया की व्यवस्था है। मृत्यु का सिद्धांत सब जीवों के लिए है, उसमें पक्षपात नहीं, सबके लिए समान है। जैन शासन में कहा गया है कि धर्म को कल पर छोड़ने की बात वही कर सकता है, जिसकी मौत के साथ दोस्ती होती है। दूसरा कहता है कि मौत आएगी तो मैं पलायन कर जाऊँगा। तीसरा कहता है कि मैं तो अमर हूँ। पर ये सब कहने की बात है, मौत किसी को नहीं छोड़ती। देव भी अमर नहीं हैं। मानव जीवन इसलिए मिला है कि कुछ परमात्मा की साधना कर आत्मा का उद्धार कर सके। योनियों में जाने से छुटकारा मिल सके। इसलिए संयम-तप से अच्छा जीवन जीएँ। जीवन में साधना-सादगी रहे। मोक्ष को पाने की कामना रहे। संन्यास तो हर कोई ग्रहण नहीं कर सकता। गृहस्थ जीवन में जितनी हो सके, उतनी साधना करें। अणुव्रत स्वीकार करें। बुरी आदतों को छोड़ें। जप-स्वाध्याय करें, ताकि मोक्ष की ओर आगे बढ़ सकें। एक जन्म में मुक्ति नहीं मिलती और जन्म लेने पड़ेंगे। जीवन में नियम-व्रत और साधना हो। यह एक प्रसंग से समझाया कि ग्रहण किए नियम को निभाने से कल्याण हो सकता है। हम जीवन परमात्म पद पाने के लिए जीएँ। जीवन में व्रत नियम हों, ताकि आत्मा का कल्याण हो सके। पूज्यप्रवर ने अहिंसा यात्रा के संकल्पों को समझाकर स्थानीय लोगों को स्वीकार करवाए। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में स्कूल प्रििंसपल कैलाश गुप्ता ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। स्थानीय लोगों ने सत्संगत का लाभ लिया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि साधु तो कंचन-कामिनी के त्यागी होते हैं।