सद्कार्यों में लगी आत्मा सच्ची मित्र हो सकती है : आचार्यश्री महाश्रमण
भगवतगढ़, 15 दिसंबर, 2021
मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमण जी 10 किलोमीटर का विहार कर भव्य जुलूस के साथ महेंद्रगढ़ के माध्यमिक आदर्श विद्या मंदिर पधारे। भगवतगढ़ हमारे धर्मसंघ का अच्छा श्रद्धा का क्षेत्र है। पूज्यप्रवर ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि शास्त्र में कहा गया हैहे पुरुष! तुम ही तुम्हारे मित्र हो, फिर क्यों बाहर मित्र खोजते हो। हमारी आत्मा ही हमारी मित्र है। आत्मा ही आत्मा की मित्र या शत्रु बन जाती है। बाहर भी दुनिया में मित्र बनाए जाते हैं। पर वे दो नंबर के हैं, पहले नंबर की मित्र हमारी आत्मा है। बुरे कार्यों में लगी हुई हमारी आत्मा हमारी दुश्मन है। सद्-कार्यों, अच्छे धर्म के कार्यों में लगी आत्मा हमारी मित्र बन जाती है। हिंसा, झूठ, चोरी आदि बुरे काम हैं। अहंकार, गुस्सा, आसक्ति भी बुरे काम हैं। अहिंसा, ईमानदारी, समता शांति में रहना अच्छे कार्य हैं। कर्मवाद का सिद्धांत है कि प्राणी जैसा कर्म करता है, वैसा फल भोगने को मिलेगा। कर भला, होत भला। कर बुरा, होत बुरा। हमें मानव जन्म मिला है, इसको बुरे कार्यों में नहीं लगाना चाहिए। एक आदमी सोने के थाल में खाना खाने के बजाय उसमें घर का कूड़ा-करकट इकट्ठा कर बाहर फैंकता है। एक आदमी को अमृत मिल गया, उसको पीता या पिलाता नहीं बल्कि गंदे पैरों को अमृत से धोता है। एक आदमी के पास श्रेष्ठ हाथी है, पर वह उस पर सवारी न कर लकड़ी का भार ढोता है। एक आदमी को कहीं चिंतामणी रत्न मिल गया उससे वह इच्छा पूरी न करके उसको कौए को उड़ाने में काम लेता है। मानव जीवन को पाकर पापों में जो जीवन बिता देता है, वो ना-समझ है। धर्म का सिद्धांत है कि पुनर्जन्म होता है, आत्मा अमर है। इस जन्म के बाद आत्मा नया जन्म लेती है। अच्छे कर्म किए हैं तो अच्छा फल मिल सकेगा, बुरे कर्म का बुरा फल मिलेगा। ये मानव जीवन दुर्लभ बताया गया है, जो हमें प्राप्त है, उसका हम सदुपयोग करें। पापों से बचें, धर्म का स्वाध्याय करें, तो आत्मा की निर्मलता बढ़ सकती है। आज भगवतगढ़ आना हुआ है। यहाँ के लोगों में धर्म की भावना रहे। धर्म के साथ आचरण भी अच्छा हो। धर्म कहता है कि तुम चोरी न करो। पूज्य आचार्य तुलसी 40 वर्ष पहले यहाँ पधारे थे। अणुव्रत की बात बताई थी। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने प्रेक्षाध्यान, जीवन-विज्ञान की बात बताई थी। ये बातें हमारे जीवन में आ जाएँ तो आत्मा शुद्ध बन सकती है। हम अहिंसा यात्रा में तीन बातों का प्रचार कर रहे हैं। इनसे आदमी का जीवन अच्छा रह सकता है। गृहस्थ सद्मार्ग पर चलें। महात्मा न बन सको तो दुरात्मा तो न बनो। सद्-आत्मा तो बनो। हिंदु-मुसलमान बाद की बात है, पहले हम इंसान हैं। अच्छे इंसान बनें, इंसानियत रखें, दुर्व्यवहार न हो। हर जगह विभिन्न धर्म के लोग रहते हैं, पर लड़ाई-झगड़े में न जाएँ, सब में मैत्री भाव हो। दुकान में ईमानदारी का धर्म रहे। भवन में भी धार्मिक प्रवृत्ति चले। जीवन के स्थान में भी धर्म हो। धर्म एक कल्याण का मार्ग है। सबमें अच्छी भावना रहे। पूज्यप्रवर ने अहिंसा यात्रा के संकल्प समझाकर स्थानीय लोगों को स्वीकार करवाए। सम्यक्त्व-दीक्षा ग्रहण करवाई। मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि महापुरुषों का प्रवचन जनता के हित के लिए होता है, उसे जीवन में उतारने का प्रयास करें। आचार्यप्रवर की अभ्यर्थना में स्थानीय सरपंच केदार गुर्जर ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति देने के साथ ही संपूर्ण भगवतगढ़ समाज की ओर से आचार्यश्री के श्रीचरणों में अभिनंदन-पत्र समर्पित किया तो आचार्यश्री ने मंगल आशीष प्रदान की। स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष नेमीचंद जैन, मंत्री महेंद्र जैन, पूर्व विधायक मोतीलाल मीणा, ओम जैन, रामेश्वर जैन, अर्पित जैन, रितेश गोयल, मंगल जैन व उक्त विद्या मंदिर के संरक्षक बद्रीलाल शर्मा ने अपनी श्रद्धासिक्त अभिव्यक्ति दी। स्थानीय महिला मंडल और कन्या मंडल ने स्वागत गीत का संगान किया। डॉ0 वैभव जैन ने भी गीत का संगान किया।
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने थोड़े समय बाद ही भगवतगढ़ से सांन्ध्यकालीन विहार के लिए गतिमान हो चले। सूर्य धीरे-धीरे अस्ताचल की ओर गतिमान था। आचार्यश्री लगभग छह किलोमीटर से अधिक की दूरी तय कर गिरधरपुरा गाँव स्थित राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में पधारे। विद्यालय के शिक्षकों आदि के द्वारा आचार्यश्री का स्वागत किया गया। आचार्यश्री का रात्रिप्रवास इसी विद्यालय में हुआ। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि भगवान के पधारने से भगवतगढ़ के सभी जैन-अजैन भगतों के दिल खुल गए हैं।