तत्त्ववेत्ता और अध्यात्मवेत्ता आचार्य थे श्रीमद्जयाचार्य : आचार्यश्री महाश्रमण
बरड़िया कॉलोनी, जयपुर,
28 दिसंबर, 2021
जयपुर को पावन बनाने जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य की जन्मस्थली, छठे आचार्य माणकगणी के जन्मस्थान, श्रीमज्जयाचार्य के महाप्रयाण भवन, मिलाप भवन आदि अनेक स्थानों पर पधारे और अपने पूर्वाचायों को श्रद्धा स्मरण करते हुए आदर्श नगर स्थित श्रीमज्जयाचार्य के स्मारक स्थल ‘साधना के प्रज्ञापीठ’ पर पधारे। आचार्यश्री ने श्रीमज्जयाचार्य के स्मारक स्थल का अवलोकन किया। तदुपरांत कुछ क्षण वहाँ आसीन होकर स्मरण कर पास ही बने प्रवचन पंडाल में पधारे।
महातपस्वी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि आगम वाङ्मय में पण्णा शब्द प्रयुक्त किया गया है। पण्णा यानी प्रज्ञा धर्म की समीक्षा करने वाली होती है और तत्त्व का विनिश्चय प्रज्ञा के द्वारा हो सकता है।
प्रज्ञा का विकास जिस व्यक्ति में होता है, वह एक संदर्भ में मानो विशिष्ट व्यक्ति होता है। अभी हम लोग राजस्थान की राजधानी और जैन श्वेतांबर तेरापंथ के अनेक इतिहासों से जुड़ा यह जयपुर शहर है, जहाँ हम प्रवास कर रहे हैं। जयपुर शहर जिसके नाम में जय शब्द है, और हमारे धर्मसंघ के चतुर्थाचार्य के नाम में भी जय है। दो जय का मिलना हुआ है। जयाचार्य ने जयपुर में अनेक चातुर्मास किए। अंतिम चतुर्मास और अंतिम श्वास का ग्रहण भी जयपुर में हुआ था। जयाचार्य को प्रज्ञा पुरुष कहा गया है। ऐसा लगता है कि उनके पास ज्ञान का अच्छा खजाना था। कितनी लंबी सूची उनके साहित्य की है। उसमें सिरमोड़ भगवती की जोड़ है। जयपुर से धर्मसंघ के अनेक आचार्यों का इतिहास जुड़ा हुआ है। आचार्यों के जन्म, दीक्षा, आचार्य पद और महाप्रयाण के प्रसंग जयपुर के साथ जुड़े हुए हैं। जयाचार्य के जीवन प्रसंग फरमाए। जयाचार्य मुनि हेमराज जी स्वामी के विद्यार्थी थे। जयाचार्य तत्त्ववेत्ता, अध्यात्मवेत्ता और विधि प्रयोग में लेने वाले आचार्य थे। अनेक विशेषताओं के पुंज श्रीमद् जयाचार्य थे। स्थूल भाषा में वे भिक्षु के अवतार थे। दोनों में कितना साम्य था। जयाचार्य से कुछ अंशों में साम्य रखने वाले आचार्य तुलसी हुए थे। जयाचार्य के महाप्रयाण स्थल सिंघड़ भवन भी गया था। माणकगणी के जन्म स्थान पर भी गया था। जयपुर में प्रवास-भ्रमण हो रहा है। हमारे में भी तत्त्वज्ञान का चिंतन-मनन का विकास होता रहे। हमारे में भी हमारे पूर्वाचार्यों के गुणों का विकास होता रहे, साधना में आगे बढ़ते रहें। ‘ जय हो कल्लु सुत जग में विश्रुत जय महाराज की’ गीत का सुमधुर संगान किया। मेरे दीक्षादाता मंत्री मुनिश्री सुमेरमल जी स्वामी से भी जुड़ा यह शहर हो गया। उन्होंने चार बालकों को दीक्षा प्रदान की थी। हमारा सम्यक् विकास होता रहे। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में तेयुप अध्यक्ष राजेश छाजेड़, स्थानीय सभा मंत्री पन्नालाल पुगलिया ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि जो संविभाग से दूर रहता है, उसे मोक्ष नहीं मिल सकता।