अपनी आत्मा को अपना परम मित्र बनाएँ : आचार्यश्री महाश्रमण
अणुविभा, 26 दिसंबर, 2021
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अणुविभा के महाप्रज्ञ सभागार में मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि दुनिया में शत्रु भी कोई हो सकता है, मित्र भी कोई होता है। शत्रु को जब अवसर मिलता है, तो वह नुकसान भी कर सकता है। परंतु निश्चय और व्यवहार ये दो दृष्टियाँ हैं। इन दो दृष्टियों से अनेक बातें सुस्पष्ट हो सकती हैं। आदमी का कोई शत्रु है, यह बात भी सही लगती है। जो हमारा हितैषी हो, वह हमारा मित्र हो सकता है। यह बात व्यवहार नय की भूमिका पर सम्यक् प्रतीत हो रही है। निश्चय की भूमिका में जाएँ तो हमारी आत्मा ही हमारी मित्र है, आत्मा ही हमारी शत्रु है। शास्त्रकार कहते हैं कि गला काटने वाला एक दुश्मन उतना नुकसान नहीं कर सकता, जितना नुकसान दुरात्मा बनी हुई हमारी आत्मा हमारा नुकसान कर सकती है। हमारी आत्मा हमारे कितने जन्मों को खराब कर सकती है। यहाँ बड़ा दुश्मन हमारी दुरात्मा ही बन सकती है। जो दुरात्मा इस जीवन में है, वो पाप करता है। जब बुढ़ापा आने पर मृत्यु सामने मँडराने लगती है, तब सोचता है, अब मेरा क्या होगा? मैंने सुना तो है कि नरक गति होती है, पापी आदमी वहाँ जाता है। मैंने कितने-कितने पाप किए हैं। वह पश्चात्ताप वाला बन जाता है। यह पश्चात्ताप बाद में क्यों करना पड़े, पहले ही आदमी सोच ले। पूर्वतय कर ले कि अच्छा जीवन जीऊँ। साधु ने चारित्र ग्रहण किया है, पर कुछ ऐसा हो जाए तो परिणाम अवांछनीय हो सकता है। साधु के दोष इतने लग जाते हैं, प्रायश्चित-आलोयणा ठीक नहीं होती है, तो वह मोक्ष के स्थान में पहुँचने में लेट हो सकता है।
शासनश्री साध्वी पद्मावती जी की स्मृति सभा
साध्वी पद्मावती जी की स्मृति सभा में पूज्यप्रवर ने फरमाया कि हमारे धर्मसंघ की एक साध्वीजी, साध्वी पद्मावती जी अनशन ग्रहण करके प्रयाण की दिशा में आगे बढ़ गई। पूज्यप्रवर ने साध्वी पद्मावती जी का संक्षिप्त परिचय दिया। गुरुदेव तुलसी के शासन में साध्वी भत्तुजी द्वारा उनकी विवाहित अवस्था में दीक्षा हुई थी। अभी वो गदग में प्रवास कर रही थीं। उनको शासनश्री सम्मान दिया गया था। 12 दिसंबर से संलेखना शुरू कर 22 दिसंबर को चौविहार संथारा ग्रहण किया था। वयोवृद्धा साध्वी थी। ऐसे अनशन ले लेना खास बात है। इन वर्षों में ऐसे संथारे कई हो गए। मोक्ष में ट्रेन पहुँचने जैसी बात हो गई। ऐसी साध्वी हमारे धर्मसंघ में आई थी। वर्षों तक रही थी और आखिर एक दिन विदा भी हो गई। मैं साध्वी पद्मावती जी की आत्मा के प्रति मंगलकामना करता हूँ। साध्वीप्रमुखाश्री जी अभी यहाँ विद्यमान नहीं हैं, वो तो उनके बारे में ज्यादा जानती हैं। हम साध्वीश्री के मंगलकामना के रूप में चार लोगस्स का ध्यान करते हैं। मुख्य मुनिप्रवर ने अपनी श्रद्धांजलि अभिव्यक्त करते हुए कहा कि हमारा धर्मसंघ गुणों की खान है। इसमें अनेक-अनेक साधु-साध्वियाँ दीक्षित हो साधना करते हैं, जीवन में कुछ निर्माण करके धर्मसंघ को अपनी सेवाएँ देते हैं। इसलिए वे धर्मसंघ के लिए रत्न के रूप में होते हैं। साध्वी पद्मावती जी ऐसी ही साध्वी थी। उन्होंने दीर्घकाल तक अपनी सेवाएँ धर्मसंघ को दी थीं। वे एक कला-कुशल साध्वी थी। स्वाध्याय निरंतर चलता था। मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि साध्वी पद्मावती जी साध्वी भत्तुजी के पास दीक्षित हुई थी। साध्वी भत्तुजी अनुशासनप्रिय साध्वी थी। उन्होंने साध्वी पद्मावती जी को अनेक शिक्षाएँ दीं, कलाएँ सिखाई। उनको आवश्यक करणीय कार्य सिखाए। वे हर कार्य निर्जरा के भाव से करती थी। वे एक सेवाभावी साध्वी थी। जयपुर तेरापंथ युवक परिषद के 50वें वर्ष के आयोजन पर पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाए कि तेयुप, जयपुर की स्वर्ण जयंती का प्रसंग है। स्वर्ण एक आकर्षणतम द्रव्य और मूल्यवान होता है। स्वर्ण रूप में बनाने के लिए कुछ प्रक्रिया से गुजरना पड़ सकता है। 50 वर्षों में संगठन क्या करता है, यह महत्त्वपूर्ण बात होती है। अनेक बातें तेयुप के सामने आई हैं। क्या करना शेष रह गया है, उसकी समीक्षा हो। 25 मुमुक्षु तैयार कर दें। तेरापंथ युवक परिषद, जयपुर ने अपने ‘स्वर्ण जयंती वर्ष’ के संदर्भ में आचार्यश्री के समक्ष गीत का संगान किया। वर्तमान अध्यक्ष राजेश छाजेड़ व पूर्व अध्यक्ष अविनाश नाहर ने भावाभिव्यक्ति देते हुए पचास वर्षों के कार्यों का विवरण प्रस्तुत किया। इससे संदर्भित बैनर प्रदर्शनी भी प्रस्तुत की गई। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए संबंधित कार्यकर्ताओं को ‘दीक्षा के अमृत महोत्सव’ के संदर्भ में मुमुक्षु तैयार करने को उत्प्रेरित किया। साथ ही उपस्थित कार्यकर्ताओं को यदि उनके घर से कोई दीक्षार्थी तैयार हो तो उसे न रोकने का त्याग रूपी संकल्प भी ग्रहण करवाया। अणुव्रत विश्व भारती के अध्यक्ष पन्नालाल बैद ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। कन्या मंडल, जयपुर व कन्या मंडल सी-स्कीम द्वारा पृथक्-पृथक् गीत का संगान किया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने भी अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। आचार्यश्री के दर्शन-सेवा के लिए देर रात तक श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहा। साध्वीवर्या जी ने कहा कि सब जीव जीना चाहते हैं। छोटी-छोटी बातों में व्यक्ति उलझकर दु:खी बन जाता है। जीवन में लैट गो का सिद्धांत अपनाएँ। साध्वी जिनप्रभा जी, साध्वी प्रबुद्धयशा जी ने भी अपनी भावना रखी। साध्वीवृंद द्वारा गीत की प्रस्तुति हुई। जयपुर के उपमहापौर पुनीत कर्णावट, तेयुप गीत, तेयुप अध्यक्ष राजेश छाजेड़, अविनाश नाहर, पन्नालाल बैद, कन्या मंडल, ज्ञानशाला की प्रस्तुति हुई। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।