आत्म युद्ध जीतने से सुख की प्राप्ति होती है : आचार्यश्री महाश्रमण
बरड़िया विला, जयपुर,
24 दिसंबर, 2021
अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण जी के पावन पदार्पण से गुलाबी नगरी, जयपुर धर्मनगरी में परिणित हो गई है। जयपुर में 11 दिनों के पावन प्रवास में आचार्यप्रवर जयाचार्य समाधि स्थल, मंत्री मुनि समाधि स्थल सहित अन्य उपनगरों में विचरण कर जयपुर में धर्म ध्यान की गंगा बहाएँगे। मार्ग में जनता को आशीर्वाद एवं मंगलपाठ प्रदान करते हुए तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी आज बरड़िया फार्म हाउस पधारे। आज युवा दिवस भी है। परम पावन ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि शास्त्र में कहा गया है कि आत्मा के साथ युद्ध करो। अपने आप से लड़ो, बाहर के युद्ध से तुम्हें क्या मतलब? आत्मा-आत्मा के साथ युद्ध कर जीतकर सुख की प्राप्ति होती है। लड़ने से कुछ मिल सकता है। हमारी दुनिया में भी कभी-कभी युद्ध की बात हो जाती है। कितनी हिंसा होने के बाद शांति-समझौता भी होता है। काश! पहले ही शांति-समझौता हो जाता। जहाँ परिग्रह है, वहाँ हिंसा का भी संबंध है। बाहर का युद्ध हिंसा और परिग्रह से जुड़ा हुआ है। शास्त्रकार ने जिस युद्ध के लिए कहा है, वहाँ परिग्रह-हिंसा नहीं। अपने आपसे केसे लड़ें? एक प्रसंग से समझाया कि भीतर का युद्ध लड़ें, आत्मा से लड़ें। कषाय आत्मा से लड़ना है, अशुभ योग और मिथ्या दर्शन से लड़ना है। लड़ने में चारित्रात्मा, वीर्य आत्मा, सम्यक् दर्शन आत्मा, ज्ञान और उपयोग आत्मा सहायता कर सकती है। द्रव्य आत्मा तो मूल आत्मा प्रदेशों का पिंड है। कषायों को, राग-द्वेष, हिंसा, घृणा को जीतने का प्रयास करें। मोहनीय कर्म का उदय भाव हमारा शत्रु है, मोहनीय का क्षयोपशम भाव उससे लड़ने वाला है। उसको जीतने का प्रयास करें। आत्म युद्ध जीतने का प्रयास करें। आज पौष कृष्णा पंचमी है। आज के दिन एक बालक ने आत्म-युद्ध के लिए प्रस्थान किया था। आज के दिन गुरुदेव तुलसी ने जीवन के बारहवें वर्ष में मुनि दीक्षा परमपूज्य कालूगणी से स्वीकार की थी। उन्होंने अपनी जन्म-भूमि में ही दीक्षा ग्रहण की। वे लाडनूं का हीरा थे। जिसने कालूगणी को एक अपेक्षा से निश्चिंत बना दिया था। आचार्य तुलसी बालावस्था में भी कुछ विशिष्टता लिए हुए थे। वे मुनि अवस्था में शिक्षक बन गए थे। बाद में धर्मसंघ के नियंता-अधिशास्ता आचार्य बन गए थे। 22 वर्ष की छोटी वय में संघ के सम्राट बन गए थे। आज के दिन एक भावी आचार्य संघ को प्राप्त हुआ था। भाग्य-पुण्य का योग और क्षयोपशम हो तो आदमी कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है। जन्म या जन्मों का पुण्य संचित किया हुआ था कि वे इतनी छोटी उम्र में अनुशासित धर्मसंघ के आचार्य बन गए थे। अणुव्रत उनका मानवता के संदर्भ में अवदान था। प्रेक्षाध्यान-जीवन विज्ञान जैसे उपक्रम भी उनके जीवन में शुरू हुए। आचार्य महाप्रज्ञ जैसे उन्हें उत्तराधिकारी प्राप्त हुए। समण श्रेणी भी उनके समय में प्रादुर्भाव हुई। 83 वर्ष की अवस्था में उनका महाप्रयाण हुआ। मंत्री मुनि मगनलाल जी स्वामी कहा करते थे कि हमारे पुजी महाराज 82 वर्ष के हैं। आचार्यश्री तुलसी एक प्रशिक्षक थे। उन्होंने अपने जीवन काल में आचार्य पद को विसर्जन करके अपने युवाचार्य को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित कर दिया। यह हमारे धर्मसंघ की विशेष बात है। आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ एक-दूसरे के पूरक थे। लंबे काल तक दोनों साथ-साथ रहे। हम भी आगे बढ़ते रहें, यह काम्य है। आज बरड़िया परिवार से संबंधित इस स्थान में आना हुआ है। इनके परिवार में अच्छे संस्कार रहे। धार्मिक सेवा करते रहें। सबमें अच्छी चित्त समाधि रहे। मुनि वर्धमान जी ने न्यारा में पहला चतुर्मास संपन्न कर पूज्यप्रवर के दर्शन किए। मुनि वर्धमान कुमार जी ने अपनी भावना श्रीचरणों में अभिव्यक्त की। मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि हम अपने गुरु के प्रति भक्ति रखें। श्रद्धा रखें। कोई व्यक्ति अपने लक्ष्य तक पहुँचना चाहता है, तो उसके लिए जरूरी है कि उसे कोई मार्गदर्शक उपलब्ध हो। बिना मार्गदर्शक के व्यक्ति आगे नहीं बढ़ सकता। हमारा लक्ष्य है, वीतरागता को प्राप्त करना। मार्ग के बिना व्यक्ति मंजिल भटक जाता है। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में बरड़िया परिवार की ओर से खुशबू जैन, राजेंद्र बरड़िया, राजकुमार बरड़िया ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। पन्नालाल पुगलिया ने पूज्यप्रवर के कल अणुविभा पधारने की सूचना दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।