साँसों का इकतारा

साँसों का इकतारा

साध्वीप्रमुखा कनकप्रभ

(45)

जिसकी करुणा ने दुनिया को नैतिकता की सुधा पिलाई।
मूर्च्छित मानवता को जिसने चेतनता की राह दिखाई॥

मेरे प्राण-सरोवर में भी जिसने अनगिन कमल खिलाए
अनजानी राहों में आ जो मंजिल का विश्‍वास दिलाए
जिसने जनम दिया देता है अविकल साँसें जो जीवन को
आम खास को बाँट रहा है मुक्‍त भाव से संजीवन को
वह मानव या देवदूत है कुछ भी अब तक समझ न पाई॥

जन-जन की सेवा में अपना जीवन अर्पित कर चलता जो
विश्‍व चेतना का साक्षी हो कल्पवृक्ष बनकर फलता जो
वर्धापन हो जन्मदिवस का सतरंगा उत्सव मनभाया
साँसों की सरगम पर सुंदर मधुर-मधुर संगीत सुनाया
पा पूरा अध्यात्मिक सिंचन मानस की बगिया सरसाई॥

अभिनंदन उस पुण्य पुरुष का जो जग की आँखों का तारा
व्यथा देख मानव की बहती हिमगिरि से गंगा की धारा
दर्शन ज्ञान चरित्र बोधि का जो सबको वरदान दे रहा
मझधारा में तूफानों में साहस से हर नाव खे रहा
सुर नर की क्या बात आज तो देती कुदरत स्वयं बधाई॥

(46)

पुलक उठा धरती का कण-कण फैला नया उजास।
जागृति का अभियान अनूठा बना रहा इतिहास॥

पलभर का सान्‍निध्य बदल देता जीवन की धारा
ज्वार नाव बन जाता है मझधार बने किनारा
पतझर की वीरानी में भी मुसकाता मधुमास॥

झेल स्वयं ही कड़ी चुनौती सूरज तम को हरता
मन की कोमल पंखुड़ियों को मधु-पराग से भरता
अँखियों में अंजन किरणों का भरता सदा प्रकाश॥

जिस धरती पर टिक जाते हैं पावन चरण तुम्हारे
बन जाता है पंथ स्वयं बनते पद्चि सितारे
बदले नजर नजारा बदले है मन का विश्‍वास॥

युगधारा को मोड़ देव! दी तुमने नई दिशाएँ
चिरयौवन का राज खोल दो दिव्य प्रेरणा पाएँ
युवा दिवस भर देता सबमें संस्कृति का उल्लास॥

(47)

अरुण की हर किरण में है तुम्हारे तेज का दर्शन।
पवन की हर लहर में है तुम्हारे स्नेह का स्पर्शन॥

मधुर मुस्कान में पाया खजाना जगत का सारा
अमिय झरता नयनयुग में हृदय में प्रेम की धारा
विरल व्यक्‍तित्व बहुरंगा न शब्दों का विषय बनता
तुम्हारे प्रथम दर्शन से हो रही मुग्ध यह जनता
मिले वात्सल्य जो तुमसे मिटे जड़ से परायापन॥

हवाएँ विषबुझी युग की विषमता घोलती मन में
दिखाकर सरणि समता की मुदित करते तुम्हीं क्षण में
निगलती शांति मानव की निरंतर लोभ की ज्वाला
बुझाते समय पर तुम ही पिला संतोष का प्याला
तुम्हारा हर इशारा है प्रगति का ही नया स्पंदन॥

समर्पित आर्य-चरणों में अबोली हृदय की आस्था
बताओ देवते! तुम ही सिद्धि का कौन-सा रास्ता
खिड़कियाँ खोल चिंतन की भरो आलोक जीवन में
दिखाओ करिश्मा जागे क्रांति का भाव जन-जन में
सुपावन पर्व के पल ये दिशाओं में भरी पुलकन॥

(क्रमश:)