शासनश्री साध्वी पद्मावती जी के अनशन के प्रति काव्यात्मक उद्गार

शासनश्री साध्वी पद्मावती जी के अनशन के प्रति काव्यात्मक उद्गार

अर्हम्

 साध्वी अणिमाश्री 

शासनश्री पद्मावती जी की, बलिहारी हम जाएँ।
अनशन का गौरव गाएँ॥

‘लाभंतरे जीविय बूहइत्ता’ आगम वाणी पहचाणी।
‘समयं गोयम मा पमायए’ है प्रभु वाणी कल्याणी।
अनशन-पथ पर कदम बढ़ा, अब शिवरमणी को पाएँ॥

जीवन के समरागण में तुम वीरांगना बन उभरी।
तब फौलादी संकल्पों से ज्योतित आँगन देहरी।
स्वत: प्रेरणा पा अनशन की, लिख दी नई ॠचाएँ॥

हद हिम्मत दिखलाई तुमने, काम किया श्रेयस्कर।
चिर-इच्छित अरमान फला है, आया स्वर्णिम अवसर।
भाव तुम्हारे बढ़ते जाएँ, यही भावना भाएँ॥

सतिवर! आज बताओ तुमने, कैसे हिम्मत कर ली?
खाते-पीते कर संथारा, कैसे झोली भर ली?
दिव्याभाष हुआ क्या तुमको? सतिवर हमें बताएँ॥

गवेषणाजी! तेरे कर में, अनुपम अवसर आया।
विज्ञ-विवेकी सुघड़, सभागी करना काम सुखाया।
मयंक, मेरु दक्षलभाजी कर सेवा उत्साए॥

‘साध्वी अणिमा’ प्रमुदित मन से तुमको आज मनाए।
कर्णिका, सुधा, समत्व, मैत्री भी, तेरी महिमा गाए।
यही कामना हम सबकी, लय आत्मा से जुड़ जाए।

संघ शिवालय, संघ हिमालय, गण ही है हरिद्वारा।
जिनशासन में तेरापंथ-गण, चमके ज्यों ध्रुवतारा।
ज्योतिचरण प्रभु महाश्रमण को, सविनय शीष झुकाए॥

लय : जहाँ डाल-डाल पर----