शासनश्री साध्वी पद्मावती जी के अनशन के प्रति काव्यात्मक उद्गार

शासनश्री साध्वी पद्मावती जी के अनशन के प्रति काव्यात्मक उद्गार

अर्हम्

 साध्वी जिनप्रभा 

ऊँची राखी थें भावां री बढ़ती श्रेणी सतिराज।
सीधो चौविहार अनशन ही पचख्यो जबरो कीन्हो काज॥

जिनशासन भैक्षवशासन री महिमा बढ़ी अपार।
महाश्रमण गुरुचरण लगाई जीवन नौका पार॥

जयपुर नगरी स्यूं गुरुवरजी भैजी शक्‍ति अपार।
महाश्रमणी रो संदेशो, गदग धरा गुलजार॥

भि भाराजमआडाकातुम महाश्रमण सरताज।
‘ॐ भिक्षु-जय तुलसी’ जपतां सर्या वांछित सारा काज॥

साध्वी भत्तू और नगीना रो हो आशीर्वाद।
द‍ृढ़ता और धीरता राखी सौ सौ साधुवाद॥

आत्मयुद्ध में उतर्या मेटण जनम-मरण संताप।
आत्मा भिन्‍न शरीर भिन्‍न रो चाल्यो अजपा जाप॥

सौम्य वदन अरु मधुरी वाणी आसी म्हानै याद।
गुरुकुलवासी श्रमणी परिकर रै मन में आह्लाद॥
गुरुकुल में जद भी आता करता म्हारै स्यूं बात।
भगिनी जिनप्रभा नै गौरव बणी ऊजली ख्यात॥

लय : चुरू री चरचा----