शासनश्री साध्वी पद्मावती जी के अनशन के प्रति काव्यात्मक उद्गार
अर्हम्
साध्वी प्रमिला कुमारी
धन्य-धन्य है सतिवर तुमको, मन को जो ऐसे मोड़ा,
बरसे शांत सुधारस झड़ियाँ।
मंजिल अब नहीं है दूर, रख ली दृढ़ता भरपूर,
सुनकर रोमांचित मन कलियाँ।
संथारा! चौविहार किया, संथारा अब तो सीझ गया, संथारा।
जन्म महोत्सव सबके होता, मृत्यु महोत्सव विरलों के होता।
जागी, जागी पुण्याई, आई शुभ घड़ि आई, आखिर कर्मों की टूटी कड़ियाँ॥
सती पद्मावती जी के चरणों में, सुर नर सब मिल शीश झुकाते।
मनोबल गजब था तेरा, आया नूतन सवेरा, पाया रिद्धि-सिद्धियों का दरिया॥
भूख पिपासा मुश्किल है सहना, तुमने विजय का पहना है गहना।
तोड़ी तन की आसक्ति, कर ली सबसे विरक्ति, ओढ़ी चंदा सी उजली चदरिया॥
कुल की शान को तुमने बढ़ाई, कर ली है तुमने शिखर चढ़ाई।
केवल एक ही लगन, हुआ है निज में रमण, पाई भावों से मुक्ति नगरिया॥
महाश्रमण का शासन पाया, जीवन को तुमने सफल बनाया।
यश झंडा फहराया, पौरुष दीप जलाया, सजाया कैसा अनूठा नजरिया॥
लय : तेरे बिन नाहि लागै जिया---