शासनश्री साध्वी पद्मावती जी के अनशन के प्रति काव्यात्मक उद्गार
अर्हम्
शासनश्री साध्वी सोमलता
तपसण पद्माश्री जी तपस्या री धूनी रमाई है
शायद स्वर्गलोक स्यूं नगीनांश्री की चिट्ठी आई है
जावां बलिहारी म्हे आपरी पचखी अठाई है॥
खानदेश सातां री धरती जठै आपरो जनम हुयो।
सरलमना पदमा ने मायावी दुनिया नहीं भाई है॥
गुरु तुलसी री किरपा स्यूं अनुकूल जोग मिलता रह्या।
शासनश्री भत्तूजी स्यूं दीक्षा री दौलत पाई है॥
लंबी-लंबी यात्रावां में जस रो परचम फहरायो।
मिलनसार पुरुषार्थी बण जीवन बगिया महकाई है॥
जयसिंहपुर में साथ बिताया बै दिन याद आवै है।
सारा रहता हंसता खिलता कली कली विकसाई है॥
हसितमुखी ज्ञानी गवेषणा मेरु कर्मठ मस्तमना।
सेवाभावी सजग मयंक दक्षा सबनें भाई है॥
अब तो आगे ही बढणो है करणी सफल चढ़ाई है।
ढाल सोम शकु संचित जागृत रक्षित मिल गाई है॥
गदग क्षेत्र में आध्यात्मिक उत्सव री चहल पहल लागी।
करुणा सागर महाश्रमण प्रभु किरपा खूब कराई है॥
लय : रोको काया री---