ज्ञान, दर्शन और चारित्र का सम्यक् योग मुक्‍ति का  मार्ग प्रशस्त करता है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

ज्ञान, दर्शन और चारित्र का सम्यक् योग मुक्‍ति का मार्ग प्रशस्त करता है : आचार्यश्री महाश्रमण

पदमपुरा, जयपुर, 23 दिसंबर, 2021
भगवान महावीर के प्रतिनिधि अहिंसा यात्रा के माध्यम से जन-जन को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्‍ति की प्रबल प्रेरणा देने वाले महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी 16 किलोमीटर का विहार कर राजस्थान की राजधानी जयपुर शहर के बाहर पद्म ज्योति नेत्र चिकित्सालय प्रांगण में पधारे। पदमपुरा दिगंबर जैन समाज का तीर्थ स्थल है। तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि अध्यात्म के जगत में ज्ञान का महत्त्व माना गया है। चारित्र का भी महत्त्व है। ज्ञान और चारित्र के बीच में एक और तत्त्व है, वह है दर्शन। दर्शन शब्द के अनेक अर्थ होते हैं। दर्शन का एक अर्थ हैदेखना। दूसरा अर्थ होता है, दिखाना, तीसरा अर्थ हो सकता है, आँख। आँख का भी शरीर में, जीवन में महत्त्व है। कई लोग नेत्रदान भी करते हैं। आँख का महत्त्व है, इनका हम सदुपयोग करें, दुरुपयोग न हो। यह एक द‍ृष्टांत से समझाया। हमारी बाहर की आँखों के साथ भीतर की आँखें भी खुलें। पदमपुरा आना हुआ है। 13 वर्ष पहले भी आना हुआ था। हमारी विवेक वाली आँखें जागृत हों तो अच्छा उपयोग हो सकता है। दर्शन का चौथा अर्थ हैसामान्य अवबोध। दर्शन का एक अर्थ हैश्रद्धा-आकर्षण और रुचि। दर्शन का एक अर्थ होता हैफिलोसोफी। नदी का एक किनारा हैज्ञान और दूसरा हैचारित्र। दर्शन दोनों के बीच है सेतू। दर्शन से ज्ञान में श्रद्धा आ जाए तो वो वस्तु आसानी से आ सकती है। विचार और आचार के मध्य सेतू हैसंस्कार। संस्कार अच्छे बन जाएँ तो विचार के अनुसार आचार हो सकता है। जैन दर्शन में कहा गया है कि ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप मोक्ष का मार्ग है। सम्यक् ज्ञान, दर्शन और चारित्र से मोक्ष मार्ग बनता है। जैसे खीर के लिए दूध, चावल और चीनी आवश्यक है। ज्ञान, दर्शन और चारित्र का सम्यक् योग बनता है, तो फिर वह मुक्‍ति-मार्ग बनता है। जो बहुत महत्त्वपूर्ण है। हम जीवन में कषायों से मुक्‍त बनें। दिगंबर-श्‍वेतांबर जैन शासन की दो धाराएँ हैं। परंतु दिगंबर हो या श्‍वेतांबर मूल कषाय मुक्‍त बनना जरूरी है। सफेद कपड़े पहने मात्र से या कपड़े छोड़ देने से मुक्‍ति नहीं, कषाय मुक्‍ति ही मुक्‍ति है। हम अहिंसा यात्रा में सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्‍ति की बात बताते हैं। जैन हो या अजैन सब गुडमेन बनें। आज जयपुर के परिपार्श्‍व में पहुँचे हैं। जयपुर और जयाचार्य में मानो नैकट्य है। जयाचार्य की महाप्रयाण भूमि है। जयपुर अनेक आचार्यों से जुड़ा हुआ है। पूज्य माणक गणी की दीक्षा भूमि है। मंत्री मुनि सुमेरमल स्वामी से भी जुड़ा जयपुर क्षेत्र है। हमारे जीवन में ज्ञान, दर्शन, चारित्र का जितना विकास हो सके, इनका योग रहे। पद्मप्रभु का भी स्मरण कर रहे हैं। जयपुर की जनता में सम्यक् ज्ञान, दर्शन, चारित्र का विकास होता रहे, यह मंगलकामना है। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में जैन सोशियल ग्रुप से कमल, उपासक श्रेणी की बहनें, नरेश मेहता एवं परिवार, विनोद जैन, स्थानीय सभा मंत्री पन्‍नालाल पुगलिया, सुधीर जैन ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावक समाज में आस्था-श्रद्धा है और जागरूक रहते हैं। गुरु द‍ृष्टि को अपनाते हैं। आचार्यप्रवर का अपना फौलादी संकल्प है। आचार्यश्री के स्वागत में पहुँचे जयपुर के सांसद रामचरण बोहरा ने कहा कि आज आचार्यश्री महाश्रमणजी के स्वागत का अवसर प्राप्त कर मैं अतिशय हर्षित हूँ। आचार्यश्री ने जिस तरह से जयपुर नगरी का बखान किया, उसे सुनकर यहाँ का जनप्रतिनिधि होने का सौभाग्य प्राप्त कर मैं स्वयं को परम सौभाग्यशाली मानता हूँ। अपनी महान यात्रा के साथ आपने इस धरती को आज पावन बनाया है। मैं आपका जयपुर में बारंबार हार्दिक स्वागत एवं अभिनंदन करता हूँ और आशीर्वाद चाहता हूँ कि आपकी कृपा सदैव बनी रहे। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।