व्यक्ति को भोग से योग की ओर बढ़ना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण
अणुविभा, जयपुर, 27 दिसंबर, 2021
अणुविभा में पूज्यप्रवर का तीसरे दिन का प्रवास। तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि तीन शब्द हैंभोग, रोग, योग। सांसारिक-सामान्य आदमी भोग के प्रति आकर्षित हो जाता है। पंचेंद्रियों के पाँच विषय हैं। पाँचों के अपने-अपने काम हैं। इन इंद्रिय विषयों के द्वारा आदमी भोग भोगता है। योग के भी दो प्रकार हैंकाम और भोग। श्रोत और चक्षु से होने वाला भोग काम कहलाता है। शेष तीन इंद्रियों से होने वाला भोग कहलाता है। काम का साक्षात आसेवन नहीं देता। भोग का साक्षात आसेवन होता है। संक्षेप में पाँचों ही भोग है। शास्त्रकार कहते हैं कि ये जो भोग है, जिनके प्रति आदमी की आसक्ति भी होती है, उसमें जो रसासक्त होकर इनका सेवन करता है, वो कर्मों से बंध जाता है। जैसे मक्खी श्लेष्म में पड़कर चिपक जाती है। आदमी सोचता है कि मैंने भोगों को क्या भोगा, भोगों ने मुझे भोग लिया। पहले आदमी नशा करता है, फिर नशा आदमी को खाने लग जाता है। यह एक वृत्तांत से समझाया कि शराब को मैं मिट्टी में नहीं मिलाता तो पीने से शराब मेरे दिमाग को मिट्टी में मिला देती है। अणुव्रत में जो कंट्रोल की बात है, वो भोग पर कंट्रोल की बात हैं उसमें नशामुक्ति, नैतिकता और संयम की बात है, जो आदमी के जीवन को निर्मल बनाने वाली है। भोग है, तो रोग को भी निमंत्रण मिल सकता है। भोग रोग का निमित्त बन सकता है। भोग से आत्मा के रोग भी हो सकते हैं। आत्मा को रोगमुक्त बनाना परम बात होती है। अभी हम जयपुर के अणुविभा के भवन में हैं। यह आचार्य महाप्रज्ञ जी से भी जुड़ा है। जयाचार्य भी जयपुर से जुड़े हैं। वे आचार्य भिक्षु के भाष्यकार थे। आचार्य महाप्रज्ञ जी का पांडित्य भी विशेष था। गला उनका मधुर था श्रद्धेय माणकगणी से भी जुड़ा शहर है। श्रद्धेय मंत्रीमुनिश्री का भी अंतिम प्रवास स्थल रहा है। ये संत पुरुष हैं, इन्होंने भोग से योग की ओर प्रस्थान किया था। हम भी भोग से योग की ओर आगे बढ़ें। गृहस्थ में भी योग की साधना की जा सकती है। जप-स्वाध्याय आदि योग है। हम इसकी जितनी साधना करेंगे, निर्जरा होगी। मोक्ष का जो उपाय ज्ञान-दर्शन, चारित्र है, वो सब योग है। आत्मा को मोक्ष से जोड़ने वाला योग होता है। हम जितना योग में रहेंगे, आत्मा के निकट रह सकेंगे। संयम, तप, जप की साधना करते रहें। योग साधना आगे बढ़ती रहे। आदमी को निवृत्ति की ओर मोड़ लेना चाहिए। संयम युक्त जीवन बने। सभी श्रावक व संस्थाएँ धार्मिक, आध्यात्मिक कार्य करती रहें। अनेक गतिविधियों का केंद्र अणुविभा है। साध्वीप्रमुखाश्री जी को भी यहाँ विराजने का, स्वास्थ्य लाभ लेने के लिए कहा है। जयपुर समाज में अच्छी धार्मिक भावना बनी रहे। परस्पर सहयोग का भाव रहे। गौरवपूर्ण गरिमा के अनुसार अच्छा करते रहें। सेवा-सामायिक साधना करते रहें। हम भोग से योग की दिशा में बढ़ते रहें, यह काम्य है। साध्वी धनश्री जी, साध्वी संयमयशा जी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। अणुविभा के अध्यक्ष संचय जैन ने अणुव्रत गौरव-2021 के लिए निर्मल रांका का नाम घोषित किया। घीसूलाल नाहर को अणुव्रत गौरव-2020 से सम्मानित किया गया। तमीशा लोढ़ा, पूर्वा-साक्षी बांठिया, हर्षिता दुगड़, हितेष भांडिया (मंत्री-अणुविभा) पन्नालाल पुगलिया (मंत्री-जेएसटीएस) जेएसटीएस अध्यक्ष नरेश मेहता, छापर के व्यवस्था समिति अध्यक्ष माणकचंद नाहटा ने अपनी भावनाएँ श्रीचरणों में अर्पित की। अशोक बाफना ने अपनी एक कृति ष्त्मसंजपअम म्बवदवउपबेष् श्रीचरणों में अर्पित की। पूज्यप्रवर ने इस पुस्तक के बारे में फरमाया कि परमपूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी भी अर्थशास्त्र के संदर्भ में फरमाते थे। ये पुस्तक जो आई है, अशोक बाफना इससे जुड़े हैं। ये पुस्तक पाठक को एक अच्छी गाईडेंस देने वाली सिद्ध हो, मंगलकामना। विश्रुत जैन ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर ने मुनि कुमार श्रमण जी के संसारपक्षीय माताजी सूरजबाई की दीक्षा लाडनूं में फरमाया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि जो अशुभ लेश्या में मृत्यु को प्राप्त करता है, वो अशुभ गति में जन्म लेता है।