संतों के उपदेश जीवन में उतारने से आत्मा की शुद्धि हो सकती है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

संतों के उपदेश जीवन में उतारने से आत्मा की शुद्धि हो सकती है : आचार्यश्री महाश्रमण

बोराज, 4 जनवरी, 2022
अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण जी सर्द मौसम में धर्म की अलख जगाने 14 किलोमीटर का विहार कर बोराज गाँव में सरकारी विद्यालय पधारे। मुख्य प्रवचन में आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि प्रश्‍न हैनिर्वाण को कौन प्राप्त कर सकता है? धार्मिक साहित्य में मोक्ष की बात आती है, निर्वाण की बात आती है। दोनों शब्द एकार्थक हो जाते हैं, पर शब्द-शब्द में अंतर भी किया जा सकता है। अंतर किए जाने पर भी शब्द एक-दूसरे के पर्यायवाची हो जाते हैं। अलग-अलग द‍ृष्टिकोण हो सकते हैं। जैसे भिक्षु कौन? अलग-अलग नय से अलग अर्थ हो सकता है। एक नय कहता हैजो भिक्षा लेता है, वह भिक्षु होता है। सात नयों में अंतिम नय कहता है कि भिक्षा करता है, इस आधार पर मैं भिक्षु नहीं रहता। वर्तमान में भिक्षा ले रहा है, वह भिक्षु है। बाकी समय में भिक्षु नहीं है एवं भूत नय का अपना मंतव्य है। साधना के समय भिक्षु नहीं है। निर्वाण और मोक्ष में शब्दों में अंतर किया जा सकता है। दीपक का बुझ जाना निर्वाण है। मोक्ष मुक्‍ति से जुड़ा हुआ है। निर्वाण को वो प्राप्त कर सकता है, जिसके भीतर में धर्म है। धर्म वहाँ टिकता है, जो व्यक्‍ति शुद्ध होता है। शुद्धि बाह्य भी हो सकती है पर जिसका चित्त शुद्ध होता है, उसके धर्म टिकता है। यह एक प्रसंग से समझाया कि बाह्य शुद्धि से चित्त की शुद्धि नहीं हो सकती। भीतर की कड़वाहट स्नान करने से नहीं जाती। भीतर के पाप स्नान करने से साफ नहीं होंगे। उपदेशों को जीवन में उतारने से आत्मा की शुद्धि हो सकती है। जल से शरीर की शुद्धि हो सकती है, पर मन की नहीं। आत्मा ही अपने आपमें एक नदी है। उसमें संयम रूपी पानी है, उस में सत्य का प्रवाह बहता है, शील उसके तट हैं। उसमें दया की भावना उसकी तरंगें हैं, इस नदी में स्नान करो तो शुद्धि हो जाएगी। जीवन में संयम की साधना करो, सच्चाई के पथ पर चलो, शील की आराधना करो और दया की भावना रखो, उसमें डुबकियाँ लगाओ, शुद्धि हो जाएगी। गुरुदेव तुलसी अणुव्रत में बताते थेनैतिकता की सुर-सरिता में जन-जन पावन हो। जो शुद्ध होता है, उसके भीतर में धर्म ठहरता है। जो ॠजु होता है, सरल होता है, उसकी शुद्धि होती है। गलती कोई हो जाए तो स्वीकार कर प्रायश्‍चित्त का वहन कर लो, तो शुद्धि हो सकती है। छल-कपट, पाप को छिपाना है तो शुद्धि कैसे हो? हम ॠजुभूत रहें। गलती का परिमार्जन करें। निर्वाण का एक आधार हैॠजुता, सरलता, उसकी साधना करो तो हम निर्वाण की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। समणी श्रद्धाप्रज्ञा जी ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। इनके संसारपक्षीय पिताजी का कुछ समय पहले देहावसान हो गया था। पूज्यप्रवर ने उनके बारे में उद्बोधन प्रदान कर पारिवारिकजनों को संबल प्रदान करवाया। समणी श्रद्धाप्रज्ञा जी व पारिवारिकजनों में धर्म की भावना बनी रहे। बोराज स्कूल की प्रििंसपल गीता राधा, सरपंच सुरेंद्र सिंह मीणा, जैन समाज से पंकज जैन ने पूज्यप्रवर के स्वागत में अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।