इच्छाओं पर नियंत्रण से आत्मिक और मानसिक शांति मिलती है : आचार्यश्री महाश्रमण
मणीपाल युनिवर्सिटी, 3 जनवरी, 2022
अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रात: मणीपाल युनिवर्सिटी परिसर में पधारे। युनिवर्सिटी के कुलपति जी0के0 प्रभु ने पूज्यप्रवर का भावभीना स्वागत किया। पूज्यप्रवर ने डिग्री प्राप्त साधु-साध्वियों का वाइस चांसलर से परिचय करवाया जिससे चांसलर गदगद हो गए और प्रभावित भी हुए कि तेरापंथ के साधु-साध्वियाँ इतने शिक्षित हैं। महामनीषी परम पावन ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी के मन में इच्छाएँ भी पैदा होती हैं। इच्छाएँ अच्छी भी हो सकती हैं और अवांछनीय भी हो सकती हैं। अच्छी इच्छा है, वह सद्इच्छा है। बुरी इच्छा दुरिच्छा हो जाती है। आदमी के मन में भौतिक पदार्थों के प्रति भी आकर्षण होता है। दो मार्ग हैं, एक आध्यात्मिकता का मार्ग और दूसरा भौतिकता का मार्ग है। दो विचारधाराएँ रही हैं। एक आस्तिक विचारधारा। दूसरी नास्तिक विचारधारा। आस्तिक विचारधारा में आध्यात्मिकता की बात आती है, नास्तिक विचारधारा में भौतिकता की बात आती है। हम आध्यात्म की इच्छा करें। वीतराग बनें, कल्याण के मार्ग पर चलें।
इच्छा अनंत हो जाती हैं। इच्छा के इस क्रम को तोड़ें, संतोष को धारण करें। संतोष का आभूषण ग्रहण करें। मोहग्रस्त मूढ़ लोग असंतोष में रहने वाले होते हैं। पंडित-अध्यात्मवेत्ता हैं, आत्मा निर्मल है, वो लोग संतोष को ग्रहण कर लेते हैं। संतोष का अंत नहीं है। जो संतोष प्राधन्य में रहता है, वह पूज्य है। इच्छा का परिसीमन करें। गृहस्थों के लिए बारह व्रतों में दो व्रत हैंइच्छा परिमाण और भोगोपभोग। इनकी सीमा हो। मोक्ष की साधना के लिए इच्छाओं का परिसीमन अपेक्षित है। अनिच्छ होना भी अपेक्षित है। अल्पेच्छ बन जाएँ, महेच्छ न रहें। आदमी को जैसे सुविधा मिलती है उसकी माँग और बढ़ जाती है। यह एक प्रसंग से समझाया। आदमी ऊपर से गिरते-गिरते नीचे तक आ सकता है। इच्छा पर कंट्रोल रहे। यह आत्मिक और मानसिक शांति के लिए बढ़िया है। गृहस्थों के भी अनेक इच्छाएँ हो सकती हैं। आदमी नियम विरुद्ध अर्थार्जन न करे। नैतिकता रहे। अणुव्रत में प्रामाणिकता-नैतिकता की बात है। पैसे के उपयोग में भी सीमा रहे। सादगीपूर्ण जीवन हो। आडंबर, दिखावा न हो। दृष्टिकोण सम्यक् रहे। अनावश्यक संग्रह न हो। विसर्जन आसक्ति को छोड़ने का उपाय है। इच्छाओं के संसार में अनिच्छा का दीप जलाएँ। इच्छाओं के अंधकार में अनिच्छा का सूर्य जलाएँ। प्रतिस्त्रोत में चलना कठिन हो सकता है। कुछ बढ़िया पाना है, तो प्रतिस्त्रोतगामी बनना पड़ता है। सुख-सुविधाओं को त्यागने का प्रयास हो।
मणिपाल यूनिवर्सिटी में आना हुआ है। ये विद्या-संस्थान ज्ञान देने के लिए है। अनेक विषयों के साथ में संस्कार की भी शिक्षा दी जाए। तो एक अच्छी पीढ़ी का निर्माण हो सकता है। हम इच्छा के अंधकार में अनिच्छा की मोमबत्ती-लाइट या अनिच्छा का महासूर्य उदित हो सके, ऐसा प्रयास करें। तो जीवन में विशेष प्राप्ति की जा सकती है। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमारजी ने किया। दोपहर में विश्वविद्यालय परिसर के शारदाबाई ऑडिटोरियम में विश्वविद्यालय के कुलपति जी0के0 प्रभु सहित अनेकानेक प्रध्यापक व कर्मचारीगण ने आचार्यश्री का अभिनंदन किया। आचार्यश्री के समक्ष विद्यालय परिसर का परिचय तथा कुलगीत की प्रस्तुति की गई। तत्पश्चात कुलपति जी0के0 प्रभु ने अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए कहा कि नववर्ष के प्रारंभ में ही महान संत आचार्यश्री महाश्रमण जी का शुभागमन से हुए सभी का जीवन धन्य हो गया। हम सौभाग्यशाली हैं तो हम सभी को आपकी अमृतवाणी का श्रवण करने का सुअवसर प्राप्त हुआ है। आप धरती की परिधि से लगभग सवागुणा अधिक किलोमीटर की पदयात्रा कर चुके हैं। यह वंदनीय है। आपका आगमन हमारे लिए किसी उत्सव से कम नहीं है। आचार्यश्री ने समुपस्थित जनों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि ज्ञान के समान कोई पवित्र चीज नहीं है। ज्ञान प्राप्ति के लिए विनय का भाव, गुरु के प्रति सम्मान का भाव अर्थात् प्रणम्य, विनम्र बनना, प्रश्न अर्थात् जिज्ञासा करना और नित्य सेवा करना होता है। मेरा मणिपाल विश्वविद्यालय में पहली बार आगमन हुआ है। यहाँ विद्यार्थियों का ज्ञानात्मक विकास के साथ शारीरिक विकास के साथ मानसिक विकास और भावात्मक विकास का भी प्रयास हो तो विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास हो सकता है। सभी के सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की चेतना का भी विकास हो। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन श्रवण के पश्चात विश्वविद्यालय से जुड़े हुए लोगों ने अपनी जिज्ञासाएँ प्रस्तुत कीं। आचार्यश्री ने सभी की जिज्ञासाओं को समाहित कर पावन आशीर्वाद प्रदान किया।