असफलता से सबक सीखकर निरंतर पुरुषार्थ करना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण
अर्बन विलेजेज, 1 जनवरी, 2022
नव वर्ष 2022 का शुभारंभ-स्वागत और 2021 को विदाई। तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम महासूर्य शासन अधिशास्ता ने नव वर्ष के प्रथम दिन की शुभ वेला में शृंगारवेली से विहार कर अर्बन विलेजेज में मंगल पदार्पण किया। नव वर्ष का मंगलपाठ सुनने श्रावकों का ताँता लगा हुआ था। अध्यात्म के महासूर्य ने नव वर्ष की पावन वेला में अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि आज सन् 2022 का प्रारंभ हुआ है, उसके संदर्भ में मंगल पाठ आदि उच्चारित किया जा रहा है। पूज्यप्रवर ने वृहद मंगलपाठ की कृपा करवाई। लोगस्स पाठ का उच्चारण करवाया। मंत्रोच्चार करवाया। श्रावक समाज को संकल्प एक वर्ष के लिए स्वीकार करवाए। महामनीषी ने आगे फरमाया कि पंडित शुभ पक्ष को पहचानो। हमारे जीवन में क्षेत्र और काल का बड़ा महत्त्व है। इनके बिना हम कोई कार्य नहीं कर सकते। हर कार्य के लिए समय और स्थान अपेक्षित है। जैन दर्शन में काल को भी छ: द्रव्यों में एक द्रव्य माना गया है। समय का धर्म है, बीतना। समय थकता ही नहीं है, अनंत काल से मानो चलता आ रहा है, आगे भी चलता रहेगा। अनवरत गतिमान है। समय अतीत में जाता रहता है। जैन दर्शन में समय पर वर्णन मिलता है। समय एक पारिभाषिक शब्द भी हैं, काल की लघुत्तम ईकाई का नाम समय होता है। मानो सन् 2021 अतीत के समंदर में मिल गया है। सन् 2022 अब वर्तमान हो गया है। 2021 का सन् किसके लिए कैसा रहा, अपनी-अपनी अलग-अलग व्याख्या हो सकती है। क्या पाया, क्या खोया? खोना-पाना दुनिया में चलता रहता है, यह एक दृष्टांत से समझाया कि कषायों और राग-द्वेष को खोजना भी मानो पाना होता है। जिंदगी में आदमी कभी किसी क्षेत्र में असफल भी हो सकता है, पर झटपट निराश नहीं होना चाहिए। आगे और प्रयास करो, पता नहीं कल सफलता मिल सकती है। असफलता से सबक सीखना चाहिए। भाग्य भरोसे तो आदमी को बैठना नहीं चाहिए। भाग्य भरोसे बैठे रहने वाला अभागा आदमी हो सकता है, ऐसा मेरा विचार है। पुरुषार्थ अच्छा करते रहो। सन् 2022 एक खंड का सहचर बना है, इस मित्र से क्या पाएँ? यह चिंतन का विषय है। करने वाला योजनाबद्ध अच्छा कार्य कर सकता है। इस वर्ष में मैं धर्म-अध्यात्म की साधना क्या करूँ? सोचा जा सकता है। आदमी एक चिंतनशील प्राणी है, वह सोचे। अचिंतन से भी कुछ नई बात नया प्रकाश दिख सकता है। चिंतन का महत्त्व है, तो अचिंतन का भी महत्त्व है। अपने प्रभु के साथ भी रहें। यह एक प्रसंग से समझाया कि प्रभु के साथ रहने वाला अभय होता है। सन् 2022 में क्वनइसम ज्ूव अर्थात् दो, दो हैं, इनसे हम यह प्रेरणा लें कि एक टू को छोड़ना, दूसरे टू को रखना। राग-द्वेष इस टू को छोड़ने की साधना करें। सत्य और मैत्री इस टू को अपने जीवन में विकसित करने का प्रयास करें। आगम में कहा गया हैस्वयं सत्य खोजें, सबके साथ मैत्री करें। राग और द्वेष कर्म के बीज हैं। इनको छोड़ने का प्रयास करें। इस डबल टू के फार्मूले को ध्यान में रखकर प्रेरणा ली जा सकती है। आज 1-1-2022 है। आचार्य भिक्षु हमारे धर्मसंघ में पहले गुरु हुए थे। हमारे पूर्वाचार्यों से, तीर्थंकरों के प्राप्त संदेशों से प्रेरणा ली जा सकती है। स्वाध्याय करने का प्रयास हो। आज कई साधु-साध्वियाँ हमारे साथ हैं, पर प्रमुखाश्री जी नहीं हैं। जयपुर में होते हुए भी दूरी हो गई है। मैं उनके प्रति भी मंगलकामना करता हूँ। जल्दी मिलना हो जाए। वे भी खूब स्वस्थ रहते हुए अच्छा सेवादान-कार्य करें। हमारे धर्मसंघ के साधु-साध्वियाँ, समणियाँ, श्रावक-श्राविकाएँ हैं, उनके प्रति भी हमारी आध्यात्मिक मंगलकामना है। पूरे विश्व के लिए मेरी मंलगकामना है। कोरोना संबंध में भी सभी में चित्त समाधि रहे। प्रतिकूलता आ जाए तो समता-शांति में रहें, यह हमारे लिए काम्य है। मुख्य मुनिश्री, मुख्य नियोजिका जी, साध्वीवर्या जी ने भी अपनी मंगलभावना अभिव्यक्त की। अर्बन वीलेजज के दौलत डागा ने पूज्यप्रवर के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।