अवबोध

स्वाध्याय

अवबोध

मंत्री मुनि सुमेरमल ‘लाडनूं’

(3) चारित्र मार्ग

प्रश्‍न-20 : अनेक भवों की द‍ृष्टि से जीव कितनी बार चारित्र को प्राप्त कर सकता है?
उत्तर : मोक्षगमन से पूर्व सभी चारित्र वाले जीव जघन्य दो बार, उत्कृष्ट सामायिक 7200, छेदोपस्थापनीय 960, परिहास विशुद्धि 7, सूक्ष्म संपराय 9 व यथाख्यात वाले 5 बार उसी चारित्र को प्राप्त कर सकते हैं।
प्रश्‍न-21 : चारित्र की स्थिति कितनी है?
उत्तर : एक भव में पाँचों चारित्र की जधन्य स्थिति एक समय, उत्कृष्ट सामायिक, छेदोपस्थापनीय व यथाख्यात की कुछ कम करोड़ पूर्व, परिहार विशुद्धि की उनतीस वर्ष न्यून करोड़ पूर्व तथा सूक्ष्म संपराय की अंतर्मुहूर्त्त है।
अनेक व्यक्‍तियों की अपेक्षा से सामायिक व यथाख्यात की सर्वकाल, छेदोपस्थापनीय की जघन्य कुछ अधिक अढ़ाई सौ वर्ष उत्कृष्ट कुछ अधिक पचास लाख करोड़ सागर, परिहार विशुद्धि की जघन्य कुछ कम 200 वर्ष उत्कृष्ट कुछ कम दो करोड़ पूर्व, सूक्ष्म संपराय की जघन्य एक समय उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त्त स्थिति है।
प्रश्‍न-22 : चारित्र का उत्थान व पतन कहाँ होता है?
उत्तर : सामायिक चारित्र का उत्थान होने पर छेदोपस्थापनीय व सूक्ष्म संपराय चारित्र को प्राप्त होते हैं। छेदोपस्थापनीय वाले परिहार विशुद्धि, सूक्ष्म संपराय; सूक्ष्म संपराय वाले यथाख्यात व यथाख्यात वाले उत्थान होने पर मोक्ष को प्राप्त होते हैं। परिहार विशुद्धि का उत्थान होता नहीं। पतन व (परिवर्तन) होने पर सामायिक वाले असंयति व श्रावकत्व को प्राप्त होते हैं। छेदोपस्थापनीय वाले सामायिक, संयतासंयति, असंयतित्व को; परिहार विशुद्धि वाले छेदोपस्थापनीय व असंयतित्व को; सूक्ष्म संपराय वाले सामायिक, छेदोपस्थापनीय व असंयतित्व को; यथाख्यात वाले सूक्ष्म संपराय व असंयतित्व को प्राप्त करते हैं। (क्रमश:)