भगवान पार्श्वनाथ एक क्रांतिकारी युगपुरुष थे
चंडीगढ़
भगवान पार्श्वनाथ जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर माने जाते हैं, जिन्होंने अज्ञान-अंधकार-आडंबर एवं क्रियाकांड के माध्यम से क्रांति का बीज बनकर पृथ्वी पर जन्म लिया था। भगवान पार्श्वनाथ बचपन से ही चिंतनशील और दयालु स्वभाव के थे। वे सभी विद्याओं में प्रवीण थे। भगवान पार्श्वनाथ ने अपने समय की हिंसक स्थितियों को नियंत्रित कर समाज में अहिंसा का प्रकाश फैलाया। भगवान पार्श्वनाथ ने जैन दर्शन के रूप में शाश्वत सत्यों का उद्घाटन किया। यह शब्द मनीषी संत मुनि विनय कुमार जी ‘आलोक’ ने सभा को संबोधित करते हुए कहे।
मुनिश्री ने आगे कहा कि भगवान पार्श्वनाथ एक क्रांतिकारी युगपुरुष थे, उनकी क्रांति का अर्थ रक्तपात नहीं। क्रांति का अर्थ है परिवर्तन। क्रांति का अर्थ जागृति। क्रांति अर्थात् स्वस्थ विचारों की ज्योति। क्रांति का अर्थ आग नहीं, क्रांति का अर्थ है सत्य की ओर अभियान। उनका अंत से इति तक का पूरा सफल पुरुषार्थ एवं धर्म की प्रेरणा है। वे सम्राट से संन्यासी बने, वर्षों तक दीर्घ तप तपा, कर्म निर्जरा की, तीर्थंकर बने। उनका संपूर्ण व्यक्तित्व एवं कृतित्व जैन इतिहास का एक अमिट आलेख बन चुका है।