भिक्षु पट्टधर भारीमाल को पल-पल क्षण-क्षण ध्यायें
मुनि कमल कुमार
सादर शीष नमायें॥
पिता-पुत्र ने भिक्षु गुरुकर, संयम सुरमणि पाया
अस्थिर बना पिता संयम का, लाभ उठा ना पाया
भागी भारमल्ल गुरुवर की, महिमा प्रतिपल गायें॥1॥
बचपन में ही भारीमाल की, दुक्कर हुई कसौटी
प्रण पर पक्के रहे तीन दिन तज दी पानी रोटी
संयम में स्थिर रहे निरंतर बलिहारी हम जायें॥2॥
किशनोजी ने सोचा यह तो है मेरु सा पक्का
नहीं मानता बात बाप की हार गया कर धक्का
सोचा इसको भिक्षु प्यारे उनको जा संभलायें॥3॥
बत्तीसे मिगसर बिद सातम, बने भिक्षु के पट्टधर
मनोनयन का दृश्य मनोहर खुशियाँ छाई घर-घर
भिक्षु गुरु की सूझ-बूझ को कैसे हम विसरायें॥4॥
सांसारिक नातें हैं झूठे आत्मस्थित बन जाओ
भारीमाल ज्यों स्थिर हो करके जीवन सफल बनाओ
‘कमल’ साधना पथ पर बढ़कर भवसागर तर जायें॥5॥
लय : संयममय जीवन हो।