अवबोध
मंत्री मुनि सुमेरमल ‘लाडनूं’
मार्ग बोध
ज्ञान मार्ग
प्रश्न-29 : कौन से ज्ञान का किस दर्शन से संबंध है?
उत्तर : मति ज्ञान चक्षु-अचक्षु दर्शन
श्रुत ज्ञान दर्शन नहीं
अवधि ज्ञान अवधि दर्शन
मन:पर्यव ज्ञान दर्शन नहीं
केवल ज्ञान केवल दर्शन
प्रश्न-30 : श्रुत ज्ञान व मन:पर्यव ज्ञान के दर्शन क्यों नहीं?
उत्तर : श्रुत ज्ञान वाक्यार्थ विशेष का ग्रहण करता है। मन:पर्यव ज्ञान से मन की अवस्थाओं का बोध होता है। वाक्य व मन की अवस्थाएँ विशेष होती हैं, जबकि दर्शन सामान्य बोध होता है, इसलिए इन दोनों के साथ दर्शन को नहीं लिया गया।
(2) दर्शन (सम्यक्त्व) मार्ग
प्रश्न-1 : सम्यक्त्व का क्या महत्त्व है?
उत्तर : मोक्ष प्राप्ति का प्रथम सोपान है। सम्यक्त्व। जो जीव सम्यक्त्वी नहीं है, उसके ज्ञान नहीं होता। ज्ञान के बिना चारित्र का अभाव रहता है। चारित्र के अभाव में कर्ममुक्ति नहीं होती। सकर्मा आत्मा का निर्वाण नहीं होता।
प्रश्न-2 : सम्यक्त्व किसे कहते हैं?
उत्तर : यथार्थ तत्त्व श्रद्धा को सम्यक्त्व कहते हैं। यही सम्यग् दर्शन है। वैसे सामान्य बोध भी दर्शन है, पर यहाँ इसे सम्यक्त्व के रूप में निदर्शित किया गया है।