जैसे कछुआ अपने अंगों को अपने शरीर में समेट लेता है, इसी प्रकार पंडित पुरुष अपनी आत्मा को पापों से बचा अध्यात्म में ले जाए। - आचार्य श्री भिक्षु
जैसे कछुआ अपने अंगों को अपने शरीर में समेट लेता है, इसी प्रकार पंडित पुरुष अपनी आत्मा को पापों से बचा अध्यात्म में ले जाए।