वर्धापन उत्सव अलबेला

वर्धापन उत्सव अलबेला

शासनश्री साध्वी पानकुमारी जी ‘प्रथम’ 

नवप्रभात की मंगल बेला, भैक्षव गण में अभिनव मेला।
संघ निर्देशिका महाश्रमणी, बहाओ अमृत का रेला।

बरसे नील गगन से केसर, खरे मोती उछाले सागर।
सिंदूरी मौसम प्रियकर, डाल-डाल पे चहके मधुकर।
मलय हवाएँ गुनगुनाएँ, वर्धापन उत्सव अलबेला॥

स्वर्णिम सूरज की यह लाली, ले आई है आरती थाली।
अर्चा में है भोर रूपाली, भाग्यशाली आज खुशाली।
दाएँ-बाएँ जिधर देखो अध्यात्म का आलोक फैला॥

सतरंगा व्यक्‍तित्व तुम्हारा, मानो पावन गंगा धारा।
तुम्हारा हर इशारा प्यारा लगता सबको मोहन गारा।
अप्रमत्त जीवन मन-भावन, अनेकों में देखो अकेला॥

समता सूरत ममता मूरत, भक्‍ति भरा उपहार समर्पण।
गणहित अर्पण है यह धड़कन, रोम-रोम में बसा यह शासन।
साध्वी ‘पान’ प्रणत चरणों में, रूप तेरा नव नवेला॥