आचार्य भारमल जी के निर्वाण द्विशताब्दी पर
भारी उपकार तुम्हारा
शासनश्री साध्वी कंचनप्रभा
श्री वीर भिक्षु के पट्टधर झेलो वंदन आज हमारा।
भारी उपकार तुम्हारा॥
यह वीर गोयम री जोड़ी अद्भुत, जयाचार्य की वाणी।
लाखों-लाखों जनता ने समझी, यह जीवन कल्याणी।
जिसने समझा शाश्वत दर्शन, उसको पार उतारा॥
भिक्षु को भारीमाल मिले, यह जिन शासन पुण्याई।
सुविनीत शिष्य ने दीपां नंदन की महिमा महकाई।
जैसा चाहा अनुशासन का, वैसा रूप निखारा॥
बाँधी मर्यादा भिन्न-भिन्न, भिक्षु स्वामी ने भारी।
उन सबकी हुई कसौटी भारीमल्ल जीवन धृतिधारी।
अनगिन घटनाएँ जीवन की चमका दिव्य सितारा॥
मंगल प्रभात आज का, अभिनय स्मृतियाँ लेकर आया।
श्री भारीमालजी स्वामी के चरणों में शीष झुकाया।
धर्मसंघ का महाश्रमण सन्निधि में भव्य नजारा॥
लय : जहाँ डाल-डाल पर---