करें अभिनंदन, शतशत वंदन
मुनि अर्हत, भरत, जयदीप
करें अभिनंदन, शत-शत-वंदन।
सती शेखरा को पाकर, खिला गण गुलशन॥
ओजस्वी वाणी अनुपम, सृजनशील चिंतन।
वत्सल अमृत के सम, दृढ़ अनुशासन।
गुरु तुलसी की इस कृति से, पुलकित जन-मन॥
तेरापंथ शासन की हाँ, जगी पुण्याई।
भाग्य सरायें ऐसी, प्रमुखा जी पाई।
क्या गायें गौरव गाथा, करें कैसे अंकन॥
अर्हत के तुल्य गुरुवर महाश्रमण पाए।
चंदना ज्यूँ प्रमुखाश्री, नयन समाए।
चौथे आरे का मानो, होता है दर्शन॥
आज उगी है अभिनव भोर सुनहरी।
मंगल गीतों की घर-घर, गूँजे स्वर लहरी।
भावों के पुष्पों से हम, करें वर्धापन॥
अमृत महोत्सव मधुरिम बेला सुहानी।
प्रमुदित गद्-गद् तेरापंथ राजधानी।
दीपशिखा वन युग-युग, देना पथदर्शन॥
लय : नमो अरहंतं नमो भगवंतं