अमृत महोत्सव
शासनश्री साध्वी सोमलता
मनोनयन का नव्य नजारा।
बहे छलाछल अमृत धारा॥
चिन्मय मणि की चेतना का फैल रहा उजियारा॥टेक॥
सूरज चंदा तारों को ले, आज जमीं पर आया है।
सूरजमल जी की तनया को,सबने खूब बधाया है।
कर रही किरणें तिलक तुम्हारा, बहे छलाछल अमृत धारा॥
उछल रही आनंद हिलोरें, नाच रहे मन मोर हैं।
उतरी पहली बार संघ में, ऐसी अनुपम भोर है।
जाने किसने जादू डारा, बहे छलाछल अमृत धारा॥
हर धड़कन में सहज समर्पण, के मधुरिम सुर साज हैं।
गुरु तुलसी की हीरकणी यह, श्रमणी गण सरताज हैं।
चमका हमारा भाग्य सितारा, बहे छलाछल अमृत धारा॥
महाश्रमणीजी के नयनों में, अनुकंपा का अंजर है।
रोगी ग्लान शैक्ष की सेवा, में तो शीतल चंदन है।
हम सबने हर बार निहारा, बहे छलाछल अमृत धारा॥
नगाधिपति हिमप्रस्थ समान, उच्चता हर व्यवहार में।
शांत-प्रशांत महासागर सी, गहराई सुविचार में।
डाल रहे हैं सुर थुथकारा, बहे छलाछल अमृत धारा॥
तीन-तीन आचार्यों की, सेवा से पाया अमृत है।
अमृत मोच्छव मना रहे, रूं-रूं में खुशियाँ झंकृत है।
बज रहा नभ तक सुयश नगारा, बहे छलाछल अमृत धारा॥
पवित्रता की पछेवड़ी हो, सहिष्णुता की साड़ी हो।
रचनाधर्मी रजोहरण हो, चिन्मय चर्या सारी हो।
काटें हम कर्मों की कारा, बहे छलाछल अमृत धारा॥
सोमलता के सह शकुंतला, करती है अभ्यर्थना।
संचित जागृत रक्षित करती, श्रद्धा से अभिवंदना।
कह दो सबका भाव स्वीकारा, बहे छलाछल अमृत धारा॥
लय : झिलमिल सितारों का आंगन----