मर्यादा महोत्सव के संदर्भ में गीत
शासनश्री मुनि विजय कुमार
करें हम संघ को वंदन, तन-मन करें अर्पण,
है यह प्राण, है यह त्राण
जय संघ, जय संघ
उड़ान : भिक्षु उद्यान में देखो, खिले ये फूल हैं प्यारे,
शुभ्र आकाश में जैसे, जगमगाते हुए तारे॥
भिक्षु के संघ का साया, सदा हमको सुहाता है,
आर्य महाश्रमण का साया, सदा हमको सुहाता है,
संघ को है भक्ति भरी वंदना,
भिक्षु को है भक्ति भरी वंदना,
वंदना ओ भक्ति भरी वंदना॥स्थायीपद॥
संघ यह हमारा बेजोड़ है, भिक्षु के तप का निचोड़ है,
महिमा है जग में निराली, सबमें छायी खुशहाली,
फलता रहे सदा है भावना, वंदना॥1॥
मर्यादा संघ का आधार है, पाता सदा नया निखार है,
मर्यादा एकता की कड़ी, हम सब हैं मोतियों की लड़ी,
प्रगति का मूल महोत्सव बना, वंदना॥2॥
संघ है यह गंगा ज्यों पावन, रहता सदा यहाँ सावन,
इसमें जीएँगे, मरेंगे, सर्वस्व अर्पण करेंगे,
सबके हृदय की है कामना, वंदना॥3॥
संघ को समपित हम सभी, इसमें है सुस्थित हम सभी,
आएगी परीक्षा की घड़ी, कर देंगे कुर्बानी बड़ी,
संघ से जुड़े हुए हैं तन्मना, वंदना॥4॥
अनुशासन पर्व मनाएँ, इतिहास नूतन बनाएँ,
महाश्रमण-शासन में फूलें, संयम के झूले में झूलें,
संघ की करें ‘विजय’ आराधना, वंदना॥5॥
लय : हमें इस देश की धरती सदा प्राणों से प्यारी है।