संघ करता है उन्हें प्रणाम
संघ करता है उन्हें प्रणाम।
संघ संघपति के प्रति जिनका योगदान निष्काम॥
स्थिरयोगी-समयज्ञ-मनीषी, एक-एक से बढ़ आचार्य,
कायम मूल मान्यता रख, नव परिवर्तन जिनको स्वीकार्य।
भिक्षु की मर्यादाओं का यह विकास परिणाम॥
संघ करता है उन्हें प्रणाम॥
हुए पूर्ण वैराग्य भाव से, दीक्षित जो जो मुनि-सतियाँ,
रहे समर्पित गुरुचरणों में, बनकर उनकी प्रतिकृतियाँ।
अहं विलय की गहन साधना करते आठों याम॥
संघ करता है उन्हें प्रणाम॥
वृद्ध ग्लान गण के सदस्य की, कर अग्लान-हृदय सेवा,
चित्त समाधि पहुँच पाते कर्म निर्जरा का मेवा।
सेवाभावी पाता गण में इज्जत-सुख-आराम॥
संघ करता है उन्हें प्रणाम॥
दृढ़ आचार कुशल व्यवहारी चिंतक वक्ता व्याख्यानी,
ज्ञानी-ध्यानी कलाकार कवि, आगमजात अवधानी।
एक-एक साधु-साध्वी के, विकसित बहुआयाम॥
संघ करता है उन्हें प्रणाम॥
श्रावक और श्राविकाओं का कैसे गण भूले बलिदान,
तूफानों में रहे अडिग जो उन पर हमको है अभिमान।
सर्वांगीण विकास करें हम, बढ़ें सदा अविराम।
आत्मसाधना लक्ष्य हमारा, पाएँ मुक्ति मुकाम॥
संघ करता है उन्हें प्रणाम॥
लय : संघ का गौरव गाएँ हम/म्हारो प्यारो राजस्थान---