प्रभु महाश्रमण तुम मेरे अंतर के राम हो

प्रभु महाश्रमण तुम मेरे अंतर के राम हो

साध्वी प्रबुद्धयशा 

अभी दवाई चल रही है
कार्तिक शुक्ला द्वितीया को आदरास्पद मुख्य नियोजिकाजी ने निवेदन कियाअभी मैं प्राय: महीने के छ: उपवास करती हूँ। अब आगे प्रतिमाह सात उपवास करना चाहती हूँ। गुरुदेव ने जैसे ही स्वीकृति प्रदान की। साध्वी चंद्रिकाश्रीजी ने कहामेरी भी इच्छा है। मैं भी तिथियों का लक्ष्य बनाऊँ। गुरुदेव मुझे भी उपवास करवाओ।
आचार्यवरकितने उपवास करना चाहती हो?
चंद्रिकाश्रीजीगुरुदेव! जितने आप फरमाओ।
आचार्यवरदेखो, अभी तो तुम्हारे दवाई चल रही है।
मन में भावना रखो। फिर आगे कभी देखेंगे। पहले ठीक हो जाओ।
कर्जमुक्‍ति
एक दिन साध्वी चंद्रिकाश्रीजी ने गुरुदेव से प्रार्थना कीभंते! मेरी चाकरी बाकी है। मेरे ऊपर तीन साल की चाकरी का संघीय ॠण है। आप इतनी शक्‍ति दें मैं ठीक हो जाऊँ। और सबसे पहले चाकरी का ॠण उतार दूँ। पूज्यप्रवरथांकै मन में इंया भावना है कि मैं चाकरी करूँ। चंद्रिकाश्रीजीतहत्।
आचार्यवरतीनूं ही चाकरी लगातार कर लेस्यो।
चंद्रिकाश्रीजीतहत् गुरुदेव! तीन ही क्यूं पूरी जिंदगी सेवां कर लेस्यूं। बस आपरी किरपा स्यूं ठीक हो ज्याऊं।
साध्वीप्रमुखाश्रीजीगुरुदेव! बख्शीश करवाओ।
पूज्यप्रवरअच्छा। मान लो थांने कोई सेवा केंद्र में कोई साध्वी की सेवा में राख देवां। 30-40 वर्ष तक सेवा करनी पडै तो कर लेस्यो।
चंद्रिकाश्रीजीतहत् गुरुदेव!
पूज्यप्रवर साध्वी चंद्रिकाश्रीजी की सेवाभावना से बहुत प्रसन्‍न हुए। फरमायाथांरी भावना ने ही म्हें चाकरी माना। पूज्यप्रवर ने उनको तीन साल की चाकरी से मुक्‍त कर दिया। श्रीमद् राजचंद्र की तरह इनकी चाकरी का एग्रीमेंट फाड़ रहे हैं। कृपानिधान आचार्यवर ने कृपा बरसाते हुए ऐसे फरमाया।
साध्वीप्रमुखाश्रीजी ने चंद्रिकाश्रीजी को कहाइत्ती छोटी ऊमर में किनै बख्शीश मिलै। थे तो परम सौभाग्यशाली हो। गुरुदेव कित्ती महान कृपा करवाई है।
दो सूत्र
7 नवंबर को साध्वी सुमतिप्रभाजी ने निवेदन किया कल रात को अर्हत् वंदना के बाद साध्वी चंद्रिकाश्रीजी व्हीलचेयर से साध्वीप्रमुखाश्रीजी के पास गए। आचार्यप्रवरअच्छा! (मनमोहक मुस्कान के साथ)अब धीरे-धीरे एक कि0मी0 चलने का प्रयास करो। चंद्रिकाश्रीजीतहत् गुरुदेव।
आचार्यवरदेखो, दो सूत्र हैं तुम्हारे लिए।
पहला सूत्रटपेनंसप्रंजपवद करना यानी देखना। जैसे मन में भावना रखो, मुझे ठीक होना है। मैं ठीक हो जाऊँ विहार करूँ। ऐसे देखो अपने आपको ‘मैं साध्वीप्रमुखाश्रीजी के काफिले के साथ जयपुर, लाडनूं की ओर विहार कर रही हूँ। मेरे कंधों पर बोझ है। मैं प्रमुखाश्रीजी के साथ चल रही हूँ। बार-बार ऐसे देखो।
दूसरा सूत्र‘अनुप्रेक्षा करो, मुझे सेवा करनी है। लंबे काल तक साधना करनी है। संयम पालना है। साध्वियों की सेवा करनी है, औरों की सेवा करनी है।’
चंद्रिकाश्रीजी ने दोनों सूत्रों को दो बार उच्चरित किया। आचार्यप्रवर प्रसन्‍नता के साथ उनके मुख से सुन रहे थे।
साध्वीप्रमुखाश्रीजीगुरुकृपा स्यूं संकल्प सफल हुवै।
चंद्रिकाश्रीजीगुरुदेव अनंत कृपा करावै। बड़ा महाराज बहुत कृपा करावै। कोई शब्द नहीं है। कियां मैं कृतज्ञता ज्ञापित करूँ।
दूसरे दिन पुन: पूज्यवर ने दोनों सूत्र चंदिकाश्रीजी से बुलवाए। हम दिन में बार-बार उन्हें इन सूत्रों की अनुप्रेक्षा करवाते। वे बड़ी निष्ठा और भक्‍ति के साथ करती थी।
80-85 वर्ष तक जीना है
एक दिन आचार्यवर ने फरमायाआं नै पाछा खड्या करना है। ए कियां ही खड्या हो ज्यावै। ठीक हो ज्यावै।
आचार्यवरतुम संकल्प करो‘मुझे ठीक होना है। स्वस्थ होना है। खड़ा होना है। सेवा करनी है। 80-85 वर्ष तक जीना है। संघ की सेवा करनी है। साधना करनी है।’ पूज्यप्रवर की वाणी का प्रभाव। प्रेरणा का प्रभाव। वे उस रात्रि को लगभग 12:30 बजे साध्वी काम्यप्रभाजी व साध्वी हेमंतप्रभाजी जो पास में जग रही थी। उनसे कहामुझे नींद नहीं आ रही है।
दोनों ने कहागुरुदेव ने फरमाया है आपको खड़ा होना है। हम आपको फिजियोथैरेपी करवाते हैं। उन्होंने लगभग डेढ घंटे तक कोशिश की। और उस कोशिश में कामयाबी भी हासिल की। यह उनका मनोबल और गुरुवाणी का जादू था।
(क्रमश:)