साधु के उपदेश से नैतिकता का जागरण हो सकता है : आचार्यश्री महाश्रमण
जैन विश्व भारती, 17 जनवरी, 2022
कामधेनू प्रांगण से अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि अनेक प्रकार भौतिक संपदाएँ और आध्यात्मिक संपदाएँ होती है। शास्त्रों में आठ गणी संपदाओं का भी उल्लेख मिलता है। त्यागी-गणी उनकी भी संपदाएँ बताई गई हैं। वे संपदाएँ धर्म, ज्ञान और शरीर से जुड़ी हुई हो सकती है। आप लोग जो गार्हस्थ्य जीवी हैं, आपकी भी संपदाएँ होती हैं। आर्थिक संपदा, पद-प्रतिष्ठा, ताकत-जनबल, शरीर बल और वाक् बल की संपदा भी हो सकती है। आप लोगों के जीवन में आध्यात्मिक संपदा के संदर्भ में त्याग संपदा भी हो सकती है। तपस्या, ज्ञान की संपदा हो सकती है। जीवन में त्याग का बड़ा महत्त्व है। त्याग के संदर्भ में हम ईमानदारी को देखें। ईमानदारी अच्छी रखनी है तो आप गृहस्थों में भी कुछ त्याग की चेतना होती है तो वह ईमानदारी की संपदा अच्छी रह सकती है। ईमानदारी के लिए दो बातें हैंचोरी नहीं करना और झूठ नहीं बोलना। सत्य और अचौर्य इन दो पहियों पर ईमानदारी का रथ टिका हुआ है। साधु के तो जीवन भर चोरी और झूठ का त्याग होता है। गृहस्थ भी जीवन में चोरी न करने का जितने रूप में प्रयास हो, करें। दूसरे के हक की चीज छीन लेना अच्छी बात नहीं होती। टैक्स पूरा न देना भी चोरी है। साधु के उपदेश से ईमानदारी, नैतिकता की चेतना जागृत हो सकती है। साधु की वाणी का असर होता है। भारत या दुनिया का भाग्य है कि यहाँ तीर्थंकर व साधु हमेशा रहते हैं। आकाश और धरती के संवाद से समझाया कि धरती पर संतों के चरण कमल की रजें गिरती हैं। आध्यात्मिक संपदा है। मैं अभी जैविभा में प्रवास कर रहा हूँ। इस जैविभा में आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञजी के चरण कमल टिके थे। कितना प्रवास, भ्रमण, विचरण किया था। कितने साधु-साध्वियाँ, समणियाँ, मुमुक्षु बहनें यहाँ रहते हैं। कितने-कितने आयाम चलते हैं। जैविभा जय कुंजर हैं। कामधेनू भी हैं। प्रज्ञालोक, सुधर्मा सभा है। योगक्षेम वर्ष भी हुआ था। जैन समाज का महत्त्वपूर्ण स्थान है। तुलसी अध्यात्म नीडम में कितने ध्यान के शिविर लगते थे। जैन विश्व भारती एक तपोभूमि है। योगक्षेम वर्ष में मुख्य प्रवचन युवाचार्य महाप्रज्ञ जी का होता था, बाद में गुरुदेव तुलसी भी फरमाते थे। गुरुदेव तुलसी की कर्मभूमि बनी हुई है। यह एक सुरम्य स्थान है। ग्रंथागार, विश्वविद्यालय आदि कई संस्थान हैं। यहाँ हमारा भी बड़े अंतराल के बाद आना हुआ है। जैविभा का व हम सबका धार्मिक, आध्यात्मिक विकास होता रहे। इस संस्था के द्वारा धार्मिक-आध्यात्मिक अवदान भी दुनिया को दिए जाते रहें, मंगलकामना। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी की कुछ कृतियाँ जैविभा के पदाधिकारियों द्वारा पूज्यप्रवर को अर्पित की गई। पूज्यप्रवर ने आशीवर्चन फरमाया कि चार पुस्तकें अंग्रेजी भाषा की लोकार्पित हुई हैं। गुरुदेव महाप्रज्ञजी एक मनीषी व्यक्तित्व थे। ध्यान योग से भी वो गहराई से जुड़े थे। उनमें एक विशेष वैदुष्य भी था। आगम संपादन में भी उनका योग रहा था। उनका स्वयं का भी अलग साहित्य था। जिन्होंने शारीरिक श्रम किया है, उनका योगदान रहा है। इस प्रसंग पर मुख्य नियोजिकाजी जो आचार्य महाप्रज्ञ के वाङ्मय के संपादन से जुड़ी हैं, ने कहा कि जैविभा में पूज्यप्रवर का प्रवेश का दृश्य अनूठा था। यहाँ जो व्यक्ति आता है, उसे शांति की अनुभूति होती है। यहाँ से शिक्षा और साहित्य की प्रवृत्तियाँ चलती है। पूज्य गुरुदेव तुलसी स्वप्न दृष्टा थे। पूज्यप्रवर भी स्वप्न दृष्टा हैं। आपने महाप्रज्ञ शताब्दी पर फरमाया था कि आचार्य महाप्रज्ञ का साहित्य महाप्रज्ञ वाङ्मय के रूप में सामने आए। वह सामने आया है। 25 से भी ज्यादा पुस्तकें अंग्रेजी भाषा में सामने आई है। यह कार्य और आगे चलता रहे। पूज्यप्रवर के जैविभा में स्वागत-अभिनंदन कार्यक्रम आज आयोजित हुआ। जैविभा के अध्यक्ष मनोज लुणिया ने अपनी भावना अभिव्यक्त करते हुए जैविभा की गतिविधियों एवं नूतन निर्माण कार्य की जानकारी दी। महामंत्री प्रमोद बैद, व्यवस्था समिति अध्यक्ष शांतिलाल बरमेचा स्वागताध्यक्ष राकेश कठोतिया, जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय के कुलपति बच्छाराज दुगड़, मुमुक्षु परिवार, समणीवृंद, उम्मेदसिंह बोकड़िया ने अपनी भावना व्यक्त की। जैविभा द्वारा उम्मेदसिंह बोकड़िया (जिन्होंने महाश्रमण विहार का निर्माण करवाया है), रमेश बोहरा (जिन्होंने जयकुंजर का निर्माण करवाया है), राकेश कठौतिया (जिन्होंने जैविभा के मुख्य प्रवेश द्वार का निर्माण करवाया है), यूएसए निवासी स्वतंत्र जैन (जिन्होंने साहित्य सदनम् का निर्माण करवाया है) का सम्मान किया गया। कार्यक्रम के उपरांत आचार्यश्री जैन विश्व भारती परिसर में आचार्यश्री महाश्रमण षष्टिपूर्ति व साध्वीप्रमुखाश्रीजी के अमृत महोत्सव के संदर्भ में नवनिर्मित साहित्य सदनम् में पधारे। इस भव्य सदनम् का शुभारंभ आचार्यश्री के मंगलपाठ से हुआ। आदर्श साहित्य विभाग के संयोजक पुखराज बड़ोला व सह-संयोजक विजयराज आंचलिया ने भवन के विषय में अवगति दी। आचार्यश्री ने उसका अवलोकन करने के पश्चात पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि यह साहित्य सदनम् साहित्य की संपूर्ण जानकारी व नव्यता-भव्यता के लिए प्रदर्शित हो रहा है। इससे साहित्य की विशेष खुराक मिलती रहे। बहिर्विहार से समागत साध्वीवृंद ने गुरुचरणों में हस्तनिर्मित कलाकृतियाँ भेंट की। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि जैविभा अपने आपमें एक विशिष्ट शक्ति है।