आचार्य भारमल जी तेरापंथ धर्मसंघ के द्वितीय ही नहीं अपितु अद्वितीय आचार्य थे : आचार्यश्री महाश्रमण
जैन विश्व भारती, 23 जनवरी, 2022
तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य प्रवर्तक आचार्यश्री भिक्षु के पट्टधर, द्वितीय आचार्यश्री भारमलजी का द्विशताब्दी महाप्रयाण दिवस-माघ कृष्णा अष्टमी। आज से लगभग 200 वर्ष पूर्व आचार्यश्री भारमलजी का महाप्रयाण राजनगर में हुआ था। आचार्य भिक्षु और युवाचार्य भारमल जी को वीर-गोयम की जोड़ी से उपमित किया गया है। भिक्षु और भारमल दो शरीर और एक आत्मा थे। पूज्य भारमल जी स्वामी ने दीक्षा भी मुनि भीखण जी से ग्रहण की थी। तब से लेकर अंत तक वे पूज्य आचार्य भिक्षु से जुड़े रहे। लगभग 28 वर्ष का युवाचार्य काल और साढ़े अठारह वर्ष का आचार्य काल रहा। लगभग 65 वर्षों से साधिक आपका संयम पर्याय रहा। आपके शासन काल में 82 दीक्षाएँ (38 साधु 44 साध्वियाँ) हुई। इस महाप्रयाण द्विशताब्दी अवसर पर पूज्यप्रवर आचार्यश्री भारमल जी को शत-शत वंदन व भावांजली। आचार्य भारमलजी महाप्रयाण द्विशताब्दी के अवसर पर तेरापंथ के एकादशम पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन शासन में नमस्कार महामंत्र बहुत ही श्रद्धा भाव के साथ जपा जाता है या प्रतिष्ठित है। पाँच पदों से संवृहित यह महामंत्र है। इसमें मध्यस्थ नमो आयरियाणं है। तीसरा पद आचार्य का होता है। मानो कि ऊपर के दो पद संरक्षण देने वाले होते हैं, आगे के दो पद आचार्यों का सहयोग करने वाले हैं। जैन शासन में आचार्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जब उस स्थिति में अर्हत यहाँ विराजमान नहीं है। जैन श्वेतांबर तेरापंथ में तो आचार्य का और वह भी वर्तमान समय में आचार्य का स्थान बड़ा गरिमापूर्ण और विशिष्ट सम्मान युक्त होता है। हमारे धर्मसंघ में तो आचार्य नियंता
होते हैं। नियामक, नियंत्रक और अनुशासक होते हैं। हमारे इस विशाल धर्मसंघ में सर्वोच्च पूज्य और सर्वोच्च आदेश पाल्य होता है, वे अति अनिवार्यरूपेण आचार्य होते हैं। आगम में भी आचार्य को बहुत महत्त्व दिया गया है। आचार के रूप में दिशा-निर्देश देने वाले, स्वयं आचार का पालन करने वाले आचार्य होते हैं। आज हम तेरापंथ के द्वितीय आचार्य परमपूज्य, परम श्रद्धेय, परम वंदनीय आचार्यश्री भारमल जी का महाप्रयाण द्विशताब्दी का त्रि-दिवसीय कार्यक्रम प्रारंभ कर चुके हैं। आचार्य भारमलजी द्वितीय आचार्य थे, कुछ संदर्भों में, मैं कहना चाहूँगा कि वे अद्वितीय आचार्य थे। हमारे धर्मसंघ के प्रथम आचार्य भिक्षु स्वामी थे, उनके अनंतर पट्टधर एकमात्र भारमलजी स्वामी थे। बाकी के सारे आचार्य परंपर हैं। तेरापंथ के प्रथम युवाचार्य भारमलजी स्वामी थे। सर्वाधिक युवाचार्य काल भोगने वाले वे एकमात्र थे।
आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने मुझे भारमलजी के रूप में देखा है, यह उनकी कृपा मानूँ। तो मैं उनको आचार्य भिक्षु के रूप में देख लूँ। आज हम जिस महापुरुष की महाप्रयाण द्विशताब्दी मना रहे हैं, वे हमारे द्वितीय ही नहीं, कुछ संदर्भों में अद्वितीय आचार्य हैं।
आचार्यश्री भारमलजी में निर्भीकता का भाव इतिहास बताता है। केलवा के प्रथम चातुर्मास के संदर्भ में विस्तार से समझाया। बाल मुनि में अभय का भाव था। उनके लिए भिक्षु स्वामी ने जो एक प्रयोग किया वो प्रयोग हमारे इतिहास का प्रसंग है कि कोई गृहस्थ तुम्हारी गलती निकाल दे तो तुम्हें तेला करना। उन्होंने उसे भी शिरोधार्य किया। इतिहास बताता है कि इस तरह दंड के रूप में उन्हें कभी तेला नहीं करना पड़ा। हम चारित्रात्माएँ भी उनसे प्रेरणा लें। ईर्या समिति में हरियालीकाई आ जाए तो हम बचने का प्रयास करें। हमारे में भी निर्भीकता का भाव बढ़ता रहे। हमारे में उनके जीवन के प्रसंग हमारे जीवन को प्रेरणा देने वाले बन जाएँ। उन्होंने कितने ग्रंथों की प्रतिलिपियाँ की थी। आचार्य भिक्षु के साहित्य का प्रमाण है। मैं बहुत ही श्रद्धा-सम्मान के भाव के साथ भावों का अर्पण उनके प्रति कर रहा हूँ। मुख्य मूल दिन उनका परसों है, उसे हम आध्यात्मिकता, त्याग-तपस्या से मनाने का प्रयास करें। जप करना हो तो ‘मंगलं भारमल्लकं’ का जप करें। जैविभा में आज से हमारा अष्टाह्निक महोत्सव शुरू हो गया है। वर्धमान महोत्सव, दीक्षा महोत्सव उसी में शामिल है। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में मुनि देवेंद्र कुमार जी ने अपनी भावपूर्ण अभिव्यक्त दी। पूज्यप्रवर ने मंगल आशीर्वचन फरमाया। आचार्य भारमलजी द्विशताब्दी समारोह पर स्थानीय महिला मंडल, कन्या मंडल, तेयुप, व्यवस्था समिति अध्यक्ष शांतिलाल बरमेचा, मुमुक्षु बहनों एवं समणीवृंद ने गीत व भावों से अपनी भावांजली दी। मुमुक्षु राजुल ने अपनी भावना पूज्य चरणों में अर्पित की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने करते हुए बताया कि पूज्य आचार्यप्रवर वर्तमान के भारमलजी स्वामी हैं।