तेरापंथ धर्मसंघ सदैव वर्धमान बना रहे : आचार्यश्री महाश्रमण
जैन विश्व भारती, 26 जनवरी, 2022
त्रिदिवसीय वर्धमान महोत्सव का आयोजन एवं साथ में भारतीय गणतंत्र का गणतंत्र दिवस। वर्तमान के वर्धमान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने वर्धमानता को वर्धापित कराते हुए फरमाया कि ज्ञान, दर्शन, चारित्र, शांति और मुक्ति में वर्धमान रहो। आज त्रिदिवसीय वर्धमान महोत्सव का शुभारंभ हुआ है। वर्धमान महोत्सव में चार बातें सन्निहित देख रहा हूँ। चार बातें हैंभगवान महावीर का एक नाम वर्धमान है। हम उनकी परंपरा से संबंधित है। मानो वर्धमान विराजमान है। यह वर्धमानता का प्रतीक है। दूसरी बात है कि मर्यादा महोत्सव से पहले साधु-साध्वियों की संख्या वर्धमान हो जाती है, बढ़ती है। उस वर्धमानता के उल्लास को उजागर करने वाला वह वर्धमान महोत्सव होता है। तीसरी बात जो मेरे मन में आई हैसंख्या बढ़ी है, कुछ समय बाद घट सकती है। संस्था वृद्धि लंबी हो जाए, संघ में संख्या ज्यादा हो और बढ़े। वो अपेक्षित है। वर्धमान महोत्सव से प्रेरणा मिल जाए कि संख्या बढ़े। मुमुक्षु संख्या वृद्धि हो। पुरुषों की भी संख्या बढ़े। हर सिंघाड़ा प्रयत्न भी करे तो मुमुक्षुओं की संख्या बढ़ सकती है। चौथी बात हैगुणवत्ता वृद्धि, गुणात्मक वृद्धि हो। पूज्य ॠषिराय महाराज को भी आज माघ कृष्णा नवमी को आचार्य पद प्राप्त किए दो सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं। धर्मसंघ को तीसरे आचार्य के रूप में एक युवा व्यक्तित्व प्राप्त हुए थे। लगभग 30 वर्षों तक धर्मसंघ को अपना आचार्यत्व प्रदान किया था। मुझे भी पूज्य महाप्रज्ञ जी ने फरमा दियारूप बसे ॠषिराय का। मैं गुरु की वाणी को कृतार्थ करता रहूँ। मुझमें भी ॠषिराय की विशेषताएँ वर्धमान होती रहें। हमारा धर्मसंघ वर्धमान तो ऐसे है ही। ज्ञान में कितनी वृद्धि हुई है। कितने पी0एच0डी0 डॉक्टर एम0ए0 आदि डिग्री प्राप्त किए हुए हैं। यह भी वर्धमानता की बात है। महाप्रज्ञ श्रुत आराधना से भी कितने जुड़े हुए हैं। ज्ञान से दिमाग भी विकसित हो जाता है। श्रावक-श्राविकाओं में भी विकास हो रहा है। आगम कार्यों से भी कितने जुड़े हुए हैं। समणियाँ प्राध्यापन का कार्य भी कर रही हैं। हमें और भी विकास करना है। साध्वीप्रमुखाश्री जी तो बिना डिग्री के भी इतने बड़े हैं कि उनके नाम पर पी0एच0डी0 करने के लिए साध्वियाँ तैयार हैं। हमारे पास कई ऐसे व्यक्ति हैं, जो अच्छे वक्ता हैं, जिनके पास ज्ञान है, प्रबुद्धता है। ज्ञान विकास में हमारा संघ वृद्धिगंत हुआ है। हम और विकास करने का प्रयास करें।
हमारा संघ वर्धमान रहे, मैं भी वर्धमान रहूँ, ये मंगलकामना है। आज 26 जनवरी का दिन गणतंत्र दिवस है। जैविभा इंस्टीट्यूट में भी सुबह कार्यक्रम हुआ था। हमारा जो अध्यात्म का संदेश प्राचीन ॠषियों-मुनियों से मिलता रहा है, तो भारत में अध्यात्म की चेतना पुष्ट रहे। संविधान की अवज्ञा न हो। नैतिकता संयम की चेतना भारत में पुष्ट रहे। भारत की जनता खूब चित्त समाधि शांति में रहे। भारत अपना विकास धार्मिक-आध्यात्मिक, नैतिक संदर्भों में करता रहे, मंगलकामना। पूर्व वाइस चांसलर साध्वी चारित्रप्रभाजी जो अग्रणी के रूप में विचरकर पहली बार गुरुकुलवास में आई हैं। पूज्यप्रवर ने फरमाया कि चार से पाँच होकर सवाई बनकर आई हैं। खूब अच्छा विकास होता रहे। साध्वीवर्या जी ने कहा कि जो बरसाती मेंढ़क होता है, उनका अस्तित्व कुछ समय का ही होता है। आचार्य भिक्षु ने संघ में शुद्धाचार का पालन हो इसके लिए उन्होंने नई-नई मर्यादा, नियम बनाकर संविधान लिखा। उत्तरवर्ती आचार्यों ने भी मौलिक मर्यादाओं को सुरक्षित रखते हुए नई मर्यादाओं का निर्माण किया। शुद्धाचार के संस्कार हर साधु की अस्थि-मज्जा तक चले जाएँ, ऐसा प्रयास किया है। इसी कारण तेरापंथ का आचार उन्नत बना हुआ है। शासनश्री साध्वी विजय कुमार जी ने अपनी भावना पूज्यप्रवर के चरणों में निवेदन करते हुए समझाया कि इंतजार की घड़ियाँ लंबी होती हैं। साध्वी चारित्रप्रभा जी के सिंघाड़े ने गीत से अपनी भावना अभिव्यक्त की। स्थानीय तेरापंथ महिला मंडल, तेरापंथ कन्या मंडल, व्यवस्था समिति से राजेश दुगड़, मुमुक्षु बहनों एवं समणीवृंद ने वर्धमानता के स्वरों पर अच्छी भावना अभिव्यक्त की। मुनि दिनेश कुमार जी ने संयोजकीय दायित्व निर्वाह करते हुए बताया कि आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने फरमाया था कि महाश्रमण की सेवा प्रशंसनीय है। इनमें भारमलजी स्वामी और ॠषिराय जी स्वामी के दर्शन किए जा सकते हैं। पूज्यप्रवर ने शासनश्री मुनि विजय कुमार जी के बारे में फरमाया कि लंबे समय के बाद मुनिश्री के दर्शन हुए हैं। स्वतंत्र विचरण के बाद पहली बार गुरुकुलवास में पधारे हैं। साथ में रमणीय जी भी हैं, रमणीयता बनी रहे, अच्छी सेवा करते रहें।