आगम का स्वाध्याय चारित्र शुद्धि का साधन बन सकता है : आचार्यश्री महाश्रमण
जैन विश्व भारती, 28 जनवरी, 2022
त्रिदिवसीय वर्धमान महोत्सव का तीसरा व अंतिम दिन। वर्धमान के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि ज्ञान में हमें वर्धमान रहने का प्रयास करना चाहिए। दर्शन भी हमारी वर्धमानता का एक विषय तब तक बना रहना चाहिए, जब तक क्षायिक सम्यक्त्व की प्राप्ति न हो जाए।
वह जीव एक प्रकार से धन्य है, जो क्षायिक सम्यक्त्व संपन्न बन जाता है। क्षायिक सम्यक्त्व स्थायी सम्यक्त्व होता है। क्षायोपशमिक सम्यक्त्व में तो कई बार अस्थायित्व भी रहता है। औपशायिक सम्यक्त्व भी स्थायी नहीं है। सास्वादन और वेदक सम्यक्त्व भी अस्थायी है ही। चारित्र में भी वर्धमानता हो। साधु-साध्वी, समण श्रेणी, श्रावक-श्राविका या किसी अंश में मिथ्यात्वी की करणी भी निर्वद्य है, उसकी भी वर्धमानता रहे। निश्चय में रहना कठिन है कि किसके कौन सम्यक्त्व है। अभव्य जीव भी कोई साधु संस्था में प्रवेश पा ले तो पा ले। मान्यता है, अभव्य जीव नव ग्रैवेयक देवलोक तक जा सकता है। अभव्य का तो भला हो सकता है, पर हमारा भी नुकसान नहीं हो सकता है। व्यवहार में तो हमने उसे साधु ही मान रखा है। कौन जाने कौन साधु है, कौन असाधु है।
चारित्र की जो बात है, हमारी चारित्र की भी निर्मलता बढ़ती रहे। साधु के जो पाँच महाव्रत हैं, वो मानो पाँच हीरे हैं। इन हीरों के सामने चक्रवर्ती का पद भी छोटा है। ये हीरे तो मोक्ष तक पहुँचाने वाले, कीमती होते हैं। इन हीरों को कोई चुरा न ले, ये सुरक्षा हमें करनी है। चुराने वाला सबसे बड़ा चोर मोहनीय कर्म है। इस चोर से साधु, श्रावक या सम्यक्त्वी बचकर रहे। इस चोर से सावधानी रखनी चाहिए कि वो प्रवेश न कर सके।
पाँच महाव्रतों की सुरक्षा के संदर्भ में 8 प्रवचन मालाएँ हैं। पाँच समिति और तीन गुप्तियाँये संरक्षिका है। हम समितियों-गुप्तियों को मजबूत-बलवती रखें। चारित्र निर्मल रहे, इसके लिए एक उपाय हैप्रतिक्रमण। दूसरा हैप्रायश्चित। ये दो उपाय अच्छे हैं। प्रतिक्रमण शुद्धि का एक बढ़िया उपाय है। सुंदर व्यवस्था हमें मिली है, चारित्र की विशुद्धि के लिए। प्रतिक्रमण धीरे-धीरे करें तो अच्छा रह सकता है। शांति से करें। समय के अतिक्रमण से भी बचें। प्रतिक्रमण के बीच में बातें न करें, उच्चारण भी सही हो। दोष लग जाए तो प्रायश्चित भी ले लेना चाहिए। उसमें भूल न हो। अधिकृत से प्रायश्चित ग्रहण कर लें। आलोयणा भी शुद्धि का अच्छा उपाय है। दोष लगे, आलोयणा नहीं ली और वो साधु आगे चला जाए तो वो दोष साथ लेकर गया है, आगे समस्या हो सकती है। दोष मुक्त हो जाए काल धर्म पाने से पहले। आलोयणा करा दो यह मन में रहे। अधिकृत या जानकार से आलोयणा ले शुद्ध हो जाएँ। ईर्या-भाषा समिति में हम जागरूक रहें। पुज्य गुरुदेव तुलसी के पिलानी के प्रसंग को समझाया। गुरुदेव तुलसी कितनी शिक्षाएँ फरमाया करते थे। ये सब चारित्र शुद्धि से जुड़ी बातें थी जो हमारे जीवन के लिए दिशा-निर्देश बन सकती हैं। स्वाध्याय-जप का ध्यान रखें। आगम का स्वाध्याय भी चारित्र शुद्धि का साधन हो सकता है। हम क्षांति, मुक्ति, निर्लोभता आदि में विकास करें, यह काम्य है। वर्धमान महोत्सव का आज अंतिम दिन है, हम सभी वर्धमान रहें। वर्धमानता की दिशा में आगे बढ़ें। हमारे सारे कार्यक्रम अध्यात्म रूप में संवृद्ध हों। मुख्य मुनिप्रवर ने कहा कि इस कलियुग में हमें भिक्षु शासन प्राप्त है। इस भिक्षु शासन रूपी कल्पवृक्ष की छाया में हम अपना विकास कर रहे हैं। हमें महान आचार्य प्राप्त हुए हैं। वर्तमान में आचार्यश्री महाश्रमण जी जैसे महातपस्वी धर्माचार्य प्राप्त हैं। संख्या वृद्धि के साथ हमारे में गुणों की वृद्धि हो। वर्धमानता की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण गुण हैविनय। हमारी साधना का मूल लक्ष्य विनय है। मुनिवृंद द्वारा समुह गीत का सुमधुर संगान किया गया। राहुल बैद ने गीत द्वारा अपनी भावना अभिव्यक्त की।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।