आचार्य भारमलजी जागरूकता और ॠजुता के पर्याय थे : आचार्यश्री महाश्रमण
जैन विश्व भारती, 25 जनवरी, 2022
आचार्यश्री भारमलजी महाप्रयाण द्विशताब्दी के त्रिदिवसीय कार्यक्रम के अंतर्गत वर्तमान के भिक्षु आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि आचार्य को इतना महत्त्व दिया गया है कि एक केवलज्ञान संपन्न साधु भी आचार्य की उपासना, सेवा, विनय करें। धर्मशासन-जैन, शासन में और हमारे भैक्षव शासन में एक आचार्य की व्यवस्था है। हम आज परमपूज्य आचार्यश्री भारमलजी स्वामी का महाप्रयाण द्विशताब्दी का त्रिदिवसीय कार्यक्रम का आज तीसरा अंतिम और मूल दिन मना रहे हैं। आज के दिन माघ कृष्णा अष्टमी को राजनगर मेवाड़ में आचार्यश्री भारमलजी स्वामी ने जीवन का अंतिम श्वास लिया था। करीब 18 वर्षों तक आचार्य के रूप में सेवा देकर और करीब 28 वर्षों तक युवाचार्य पद के रूप में रहकर सेवा दी थी। आज उनका 201वाँ महाप्रयाण दिवस है। द्विशताब्दी की संपन्नता का दिन है। आचार्यश्री भारमलजी जैसे एक महान व्यक्तित्व धर्मसंघ को प्राप्त हुए। उस समय हमारा धर्मसंघ प्रथम चरण या पहली शताब्दी में चल रहा था। उनके जीवन की अनेक बातें हैं। विशेषताएँ हैं। आगम स्वाध्याय की प्रेरणा हम परम पूज्य भारमलजी स्वामी से ले सकते हैं। वे खड़े-खड़े उत्तराध्ययन का स्वाध्याय कर लेते थे। एक व्यक्ति आगे बढ़ता है, तो वो कितना कसौटी पर कसा जाता होगा, खपता होगा। तब एक व्यक्ति किस रूप में सामने आता है। जीवन में कुछ विशेष बनना है तो विशेष करना भी अपेक्षित है। भारमलजी स्वामी ने विशेष किया था तभी वे आचार्य के रूप में सामने आए थे। आचार्य भिक्षु का उनसे पूर्व जन्म का संबंध रहा हो सकता है। मुनि चंद्रभाणजी ने भी उनको भोला कहा था। भोला दो तरह के होते हैं। एक तो मानसिक कमजोरी के कारण। दूसरा ॠजुता, सरलता, ज्ञान है तब भोलापन हो सकता है। आचार्यश्री भिक्षु ने मुनि भारमलजी को ही अपना उत्तराधिकारी क्यों चुना होगा? पूर्व जन्म का संबंध भी हो सकता है, पर भारमलजी स्वामी में गुरु के प्रति समर्पण, विनयशीलता का भाव और उनकी निपुणता भी रही होगी। वे लिपिकार भी थे।
भारमलजी स्वामी को कितना कसा गया कि कोई गृहस्थ त्रुटि निकाल दे तो तुम्हें तेला करना होगा। बनना है, तो कभी-कभी जन्ती में से निकलना होता है, तब इस रूप में आदमी सामने आ सकता है। बड़ा बनने के लिए सहना पड़ता है और कसौटियों पर खरा उतरना होता है। तभी आदमी भारमलजी स्वामी की तरह पद पर आ सकता है। भारमलजी स्वामी के समक्ष अनुशासन का प्रसंग आया तो उन्होंने कठोरता भी दिखाई। मौजीरामजी स्वामी का प्रसंग समझाया। उन्होंने संतों को उनके आने पर उनको वंदना करने की भी मनाही कर दी। गुरु का कृपापूर्ण हाथ भी मस्तक पर नहीं टीका। बाद में प्रसन्न भी हो गए थे। हम उनके जीवन से अनुशासन का शिक्षण ले सकते हैं। आचार्य भारमलजी अद्वितीय आचार्य थे। वे प्रथम युवाचार्य और आचार्य भिक्षु के अनंतर शिष्य थे। अपने उत्तराधिकार पत्र में दो नाम लिखने वाले भी वे तेरापंथ के एक ही आचार्य थे, भले बाद में एक नाम अप्रभावित कर दिया गया था। विद्या यही है कि आचार्य अपने युवाचार्य का निर्णय कर दे, उसके बाद का निर्णय आगे आने वाले आचार्य करें। मैं बहुत ही विनय और श्रद्धा के साथ प्रणत होता हूँ उनके प्रति कि उनके जैसे आचार्य धर्मसंघ को मिले। आज उनके महाप्रयाण को दो सौ वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। भारमल जी जैसे आचार्य हमें मिले। आज अनेक लोगों ने अपने ढंग से तप किया है। साथ में जप की बात है। पूज्यप्रवर ने भी खड़े-खड़े जप किया-करवाया। श्रद्धा-भक्ति उनके चरणों में चढ़ा सकते हैं। साध्वीप्रमुखाश्रीजी ने पूज्य आचार्यश्री भारमल जी के जीवन प्रसंगों को विस्तार से समझाते हुए उनके कान न बिंधवाने के प्रसंग को समझाया कि उनमें कितनी सरलता थी। वे थे तो मेवाड़ के पर आचार्य भिक्षु जो मारवाड़ के थे उनके गोद आ गया हूँ। इसलिए मेवाड़ और मारवाड़ दोनों जगह का हूँ। उस घटना से उन्होंने श्रावकों को भी ज्ञान दिया। जयपुर न जाने के उनके प्रसंग को भी समझाया कि लाला हरचंदराय जैसा श्रावक एक होकर भी हजार जैसा है। स्थानकवासी मुनि की प्रेरणा से वे जयपुर भी पधारे। जयाचार्य के परिवार की दीक्षाएँ भी हुईं। मुख्य नियोजिका जी, साध्वीवर्या जी एवं मुख्य मुनिप्रवर ने भी उनके जीवन के अनेक रूपों-गुणों के बारे में समझाया। साध्वीवृंद ने पूज्य गुरुदेव तुलसी रचित गीत‘भारीमाल गणी, म्हारी माला रो मणी, राखो राखो हिरदै में’ का सुमधुर संगान किया। मुनिवृंद एवं साध्वीवृंद द्वारा समुह गीत की प्रस्तुति हुई। ज्ञानशाला प्रशिक्षिकाओं द्वारा गीत, ज्ञानशाला ज्ञानार्थियों की प्रस्तुति, तेयुप व महिला मंडल द्वारा समूह गीत की प्रस्तुति हुई। महासभा के अध्यक्ष सुरेश गोयल ने अपनी भावना रखी। राजस्थान सरकार के अल्प संख्यक मंत्री व वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष खानूखां पूज्यप्रवर के दर्शनार्थ पधारे। उन्होंने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।