अर्हम
संतवृंद
ॐ साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जय साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा।
तुलसी गुरु की कृति है धृति है साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा।
महाश्रमण गुरु कि असाधारण साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा॥
चंदेरी की कला निराली, दीक्षाली तब से दीवाली।
भैक्षवगण में किस्मत वाली, साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा॥
गण गणपति में पूर्ण समर्पण पावन दिल है, जीवन दर्पण।
रत्नत्रय से ही आकर्षण, साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा॥
गुरु आज्ञा को शीष चढ़ाती, संस्कारों का दीप जलाती।
बढ़ती जाती शुभ योगों में साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा॥
समभावों में प्राय: रहती पर भावों को टाटा कहती।
परिषह रहती करुणा महती, साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा॥
गुरुओं को पहुँचाती साता, आस्था से झुक जाता माथा।
चार तीरथ की शासन माता, साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा॥
साध्वीप्रमुखा अमृत महोत्सव प्रमुदित गण तरु पल्लव पल्लव।
उत्सव गुरु सन्निधि में अभिनव साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा॥
साध्वीप्रमुखा का अभिनंदन संतों का स्वीकारो वंदन।
गुरु हित गण हित जुग जुग जीयो, साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा॥
लय : जब प्यार किया तो डरना क्या---