अमृत महोत्सव गीत

अमृत महोत्सव गीत

साध्वीवृंद 

नभ से उतरी अरुणाई, सबके मन अतिशय भाई।
साध्वीप्रमुखा स्वर्णजयंती, गूंजे चिंहुदिशि शहनाई॥
ओम् जयतु जय, ओम् जयतु जय।

गुरुदेव तुलसी की, उस दिव्य द‍ृष्टि को
वंदन करें आओ, इस भव्य सृष्टि को
तुम हो समता की, ममता की मूरत
सारे जहाँ में फैली है कीरत
पीड़ा हरती जन-जन की, करुणा वत्सलता मनभाई
नभ से उतरी---

स्वाध्याय की श्रुत की, निर्मल मंदाकिनी
गुरुत्रय की पाई, सेवा वरदायिनी
गुरु का हर इंगित पल-पल आराधा
गण-हित कुर्बां हो, सबका हित साधा
सम, शम, श्रम की पावन युति व्यक्‍तित्व तुम्हारा अतिशायी
नभ से उतरी---

पुरुषार्थ की गाथा, सदियाँ सुनाएगी
दुनिया प्रशिक्षण को तेरे पास आएगी
श्रद्धा समर्पण की अद्भुत नजीर हो
हर स्थिति में धीर तुम कितनी गंभीर हो
असाधारण साध्वीप्रमुखा महाश्रमण युग वरदाई
नभ से उतरी---

तुम शक्‍तिस्वरूपा हो अधरों पर सरस्वती
ऊर्जामयी आभा मन का तिमिर हरती
श्रम की कहानी, जीवन तुम्हारा
कितनों का जीवन तुमने संवारा
आभारी है श्रमणी परिकर, तुमने दी नव ऊँचाई
नभ से उतरी----

ये पाँच दशक पावन, अनुभव की निधि अनमोल
तन मन निरामय हो अर्पित आस्था के बोल
अमृत महोत्सव, लाया बहारें
तुमको बधाएँ, चंदा सितारे
वरण करो शुभ दीर्घायु को अनहद खुशियाँ हैं छाई
सौभागी हैं प्रभु! कलियुग में सतयुग की छवि दिखलाई
नभ से उतरी---
लय : खुशियों का दिन----