शासनमाते! तुम्हें बधाऊँ

शासनमाते! तुम्हें बधाऊँ

साध्वी अणिमाश्री 

शासन माते! तुम्हें बधाऊँ।
गीत तेरे आज गाऊँ॥

बीज का विस्तार हो तुम।
स्कंध का आधार हो तुम।
नाव की पतवार हो तुम।
मैं मगन हो गुनगुनाऊँ।
शासन माते! तुम्हें बधाऊँ॥

संकल्पों ने तुम्हें संवारा।
मंजिलों ने तुम्हें पुकारा।
परिस्थिति ने तुम्हें निखारा।
मुक्‍त-कंठ से मैं सुनाऊँ।
गीत तेरे आज गाऊँ॥

बन अप्रमत्त बढ़ती रही हो।
सदा शिखर चढ़ती रही हो।
इतिहास नव गढ़ती रही हो।
मुदित मन से मैं बताऊँ।
शासन माते! तुम्हें बधाऊँ॥

सागर-सी गहराई तुममें।
मेरु-सी ऊँचाई तुममें।
सूरज-सी अरुणाई तुममें।
लो भावों का अर्घ्य चढ़ाऊँ।
गीत तेरे आज गाऊँ॥

तन-मन से मैं सदा समर्पित।
पादाम्बुज में सब कुछ अर्पित।
मेरा रोम-रोम है हर्षित।
बोलो, क्या सौगात सजाऊँ।
शासन माते! तुम्हें बधाऊँ॥