साधु जीवन संवर और निर्जरा का समवाय होता है : आचार्यश्री महाश्रमण
बीदासर, 16 फरवरी, 2022
माघ शुक्ला पूर्णिमा आज से 50 वर्ष पूर्व गंगाशहर में पूज्य गुरुदेवश्री तुलसी के करकमलों द्वारा छ: मुमुक्षुओं, दो भाई और चार बहनों की दीक्षाएँ हुई थीं। मुनि कमल कुमार जी, मुनि श्रेयांस कुमार जी एवं साध्वी सुषमाश्री जी वर्तमान में सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं। ‘तपोमूर्ति उग्रविहारी’ मुनि कमल कुमार जी पूज्यप्रवर की सन्निधि में अपना 51वाँ दीक्षा दिवस मना रहे हैं। शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हम मनुष्य हैं, मनुष्य का जन्म दुर्लभ और महत्त्वपूर्ण भी माना गया है। हमारे जीवन में दो तत्त्व हैंआत्मा व शरीर। सिद्धांत कहता है कि आत्मा तो स्थायी-शाश्वत है। परंतु शरीर अस्थायी, अशाश्वत होता है। हम शरीर को पाल-पोषकर इसकी सुरक्षा भी करते हैं। प्रश्न उठ सकता है कि शरीर पर इतना ध्यान क्यों दें। क्यों इसकी सार-संभाल करें। आखिर तो एक दिन नष्ट होने वाला है। पूर्व कार्यों का क्षय करने के लिए इस शरीर का ध्यान रखना चाहिए। इस शरीर का उपयोग हम अध्यात्म की साधना में और पूर्व कर्मों का क्षय करने में करें। संवर भी करें साथ में निर्जरा भी करें तो नए कर्म बंधेंगे नहीं, पूर्व कर्म समीचीनतया संपन्न हो सकते हैं। साधु जीवन ग्रहण करना, उसमें संवर भी आता है, साथ में शुभ योग से निर्जरा भी होती है। साधु जीवन संवर और निर्जरा दोनों का समवाय होता है। आज के दिन ठीक 50 वर्ष पूर्व वि0सं0 2028 की माघ पूर्णिमा के दिन हमारे धर्मसंघ में अनेक व्यक्ति दीक्षित हुए थे। परमपूज्य गुरुदेव तुलसी ने इन्हें दीक्षित किया था। संयम जीवन को स्वीकार करना, 50 वर्षों तक उसका पालन करना एक बड़ी उपलब्धि हो जाती है। अर्ध शताब्दी संयम जीवन की जिसे स्वर्ण जयंती कहते हैं, उससे हम यह शिक्षा लें कि जैसे स्वर्ण में निर्मलता होती है, पचास वर्षों के संयम परिपालन से आत्मा रूपी तत्त्व में सोने की तरह निखार आ जाए, आगे के और पच्चीस वर्षों में और निखार आ जाए।
सौ वर्ष का संयम पर्याय वाला तो आज तक धर्मसंघ में कोई हुआ नहीं है। सौ वर्षों का जीवन काल तो साध्वी बिदामाजी ने प्राप्त कर लिया है। हमारे धर्मसंघ की पहली चारित्रात्मा है। भगवान महावीर से लेकर अब तक जैन शासन में संयम पर्याय सौ पार हो, ऐसा अभी तक तो जानकारी में नहीं आया है। 75 वर्ष का संयम पर्याय तो हमारे धर्मसंघ में भी चारित्रात्माओं ने प्राप्त किया है। जो चारित्रात्मा तपस्या करती है, तपोमूर्ति के रूप में सामने आ जाती है, कितने लंबे समय से वर्षीतप चल रहा है। एक दिन न खाना भी हर किसी के लिए मुश्किल बात हो सकती है, वो भी वर्षों तक वर्षीतप करना विरल-विशेष बात हो सकती है। साथ में उग्र-उग्र-लंबे-लंबे विहार करना। बहुत कम मिलने वाला प्रसंग है। जिस चारित्रात्मा में व्याख्यान की भी एक भावना बनी रहती है, कहने की अपेक्षा नहीं। जहाँ उपयोगिता है, वहाँ व्याख्यान दे देना। गुरुधारणा कराना, संभाल करना, धर्म का विकास हो यही भावना रहना, विशेष बात है। बिना काशीद के यात्रा हो रही है, यह असाधारण सी बात हो सकती है। संयम की बात है। मुस्लिम भाई भी आए हैं। जीवन में आदमी के सादगी, सद्भावना और मैत्री हो। कार्य में ईमानदारी हो। नशामुक्ति हो। ऐसा जीवन होता है, तो जीवन बढ़िया है। आगे के लिए भी अच्छी बात हो सकती है। अहिंसा यात्रा में जैन धर्म के साथ जनधर्म की बातें हम बताया करते हैं। आत्मा अच्छी बने। इंसान पहले इंसान फिर हिंदू या मुसलमान। यह धर्म की बात है कि सबसे मैत्री भाव रखें। अहिंसा परम धर्म है। पाँच महाव्रतों और छठे रात्रि भोजन विरमण व्रत को स्वीकार करने वाले चारित्रात्माएँ होते हैं, उनका संयम-तप का जीवन हो जाता है। गुरु के प्रति समर्पण का भाव रहता है। ये निष्ठा की बात होती है। विनय की भावना, शासन के प्रति भावना और बात-बात में जिनके प्रमोद भावना है। छोटे संतों के प्रति भी अच्छा भाव हो। न्यारा में साधु-साध्वियाँ हैं, जिन्हें दीक्षा के 50 वर्ष हो गए हैं, वे भी अच्छी सेवा कर रहे। न्यारा में रहो या भेला में रहो, शासन के बनकर रहो वह खास बात है। आत्मा के बनकर के रहें। 50 वर्षों का संयम पर्याय मिलना अच्छी बात है। जब तक आदमी रहे, अच्छे काम करते रहें। सबके प्रति खूब मंगलकामनाएँ हैं। खूब अच्छी धर्मसंघ की सेवा करते रहें। पूज्यप्रवर ने उनके लिए मंगलपाठ की भी कृपा करवाई। प्रवचन के पश्चात मुनि कमल कुमार जी के 51वें दीक्षा दिवस पर मुनिवृंदों द्वारा मंगलकामना का विशेष कार्यक्रम आयोजित हुआ, जिसमें अनेक मुनियों द्वारा गीत और शुभकामनाएँ संप्रेषित की गई। मुनि कमल कमार जी स्वामी ने अपने भावों की अभिव्यक्ति पूज्यप्रवर के चरणों में दी। चारित्रात्माओं द्वारा प्रस्तुतियाँ हुई। बीदासर, शहर के मुस्लिम समाज के प्रतिनिधियों ने पूज्यप्रवर के दर्शन किए। मुस्लिम समाज द्वारा पूज्यप्रवर को अभिनंदन पत्र समर्पित किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।