तेरापंथ
डॉ. समणी ज्योतिप्रज्ञा
गणना में नौ की संख्या अखंड व महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। नौ ईकाई का सबसे बड़ा अंक है। अंकविज्ञान के अनुसार नौ को सौभाग्यशाली संख्या मानी गई है। जिस व्यक्ति या संघ के नाम में नौ आता है उसमें अवश्यमेव वरिष्टता होती है। नौ के पहाड़े का गुणनफल योग नौ ही होता है। नौ का हजार, लाख कितनी बार भी गुणा किया जाए, योग नौ ही रहेगा। अंकगणित की पहेलियों में भी नौ का साम्राज्य दिखाई देता है।
तेरापंथ जैन धर्म का एक शक्तिशाली व प्राणवान संघ है। इसके प्रवर्तक आचार्य भिक्षु थे। एक शुभ संयोग है कि ‘तेरापंथ’ व तेरापंथ के प्रवर्तक ‘भिखू स्याम’ दोनों में नौ की संख्या समाविष्ट है। ‘भिखू स्याम्’ भ् इ ख् उ स् य् आ म् अकुल नौ वर्ण हैं। तेरापंथ को जब अंग्रेजी में लिखा जाता है इसमें भी नौ अक्षर आते हैं। ये नौ ही लैटर्स तेरापंथ की गरिमा व महिमा को परिभाषित करते हैं। तो आइए, हम जानों क्या कहता है TERAPANTH.
T — Thy Path
E — Example of discipline
R — Root of Politeness
A — Accomodation of human being
P — Principle of one Acharya, one
Achar, one Vichar
A — All for one, one for all
N — Navigator for Vitragata
T — Talent
H — History of Struggles
Thy Path - तुम्हारा पंथ। तेरापंथ का प्रारंभ ही समर्पण से होता है। ज्योंहि सेवक कवि द्वारा उच्चारित संख्यापरक दोहा
साध साधरो गिलो करै, आप आपरो मंत।
सुणज्यो रे शहर रा लोकां, ऐ तेरापंथी तंत॥
आचार्य भिक्षु के श्रुतिगोचर हुआ, उन्होंने तत्काल चौकी से नीचे उतरकर भगवान महावीर के चरणों में वंदना की, उपर्युक्त संख्यावाची दोहे को उनकी मेधा ने समर्पणवाची बना दिया और कहा‘हे प्रभो! यह तेरापंथ’ यह प्रभु महावीर का पंथ है, मैं तो उस पर चलने वाला एक राही हूँ।
Emaple of Discipilne - अनुशासन का उदाहरण है। तेरापंथ का आधार है। प्रगति का हेतु है। फूल में सुगंध का, आकाश में सूर्य व चंद्रमा का, शरीर में प्राण का जो महत्त्व है, वही स्थान तेरापंथ में अनुशासन का है। अनुशासन तेरापंथ की रीढ़ है। आत्मारोहण के लिए सोपान है अनुशासन वह पाल है जिसमें अध्यात्म रूपी फसल सुरक्षित रहती है। अनुशासन की दृष्टि से तेरापंथ की विश्व में विशिष्ट पहचान है।
Root of Politeness - तेरापंथ अर्थात् विनय जिसका मूल है। आचार्य महाप्रज्ञ ने कहाजब तक साधु-साध्वियों, श्रावक-श्राविकाओं में विनय रहेगा, तब तक तेरापंथ फलता-फूलता रहेगा। विनय तेरापंथ का आयुष्य प्राण है। सुगंध से चंदन, सौम्यता से चंद्र, मधुरता से अमृत जैसे जगप्रिय होता है, वैसे ही विनय से व्यक्ति सर्वप्रिय होता है। यहाँ विनय का 99 रुपये और विद्या का केवल एक रुपया मूल्य आँका गया है। विनीत को हीरे व सोने की उपमा से तथा अविनीत को कांचपात्र की उपमा से उपमित किया गया है, जो थोड़ी भी चोट सहन नहीं कर पाता।
Accomodation of human being - तेरापंथ मानव मात्र के लिए अवगाहना प्रदान करता है। हे प्रभो! यह तेरापंथ : मानव-मानव का यह पंथ। फल, फूलों व पत्तों से लदा हरा-भरा वृक्ष जैसे पक्षियों के लिए शरणभूत होता है वैसे ही तेरापंथ रूपी वटवृक्ष मानव मात्र के लिए शरणस्थल है। तेरापंथ वह समुद्र है जिसमें छोटी-बड़ी सभी नदियाँ अपने आपको विलीन कर देती हैं। रत्नाकर जैसे हीरे व कंकर दोनों का समान रूप से आश्रय स्थल है वैसे ही यह संघ अमीर-गरीब, शिक्षित-अशिक्षित, मजदूर व राष्ट्रपति सभी के लिए शरणभूत है।
Principle of one Acharya, one achar and one vichar - एक आचार्य, एक आचार और एक विचार का सिद्धांत। तेरापंथ संघ सुसंगठित और सुव्यवस्थित हैइसका प्रमुख श्रेय आचार्य भिक्षु कीएक आचार्य, एक आचार और एक विचारइस महत्त्वपूर्ण त्रिपदी को है। शरीर में जो स्थान मस्तक का है वही स्थान संघ में आचार्य का है। आचार्य तीर्थंकर के प्रतिनिधि व द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के ज्ञाता होते हैं। आचार्य दीपकवत् स्वप्रकाशी और परप्रकाशी होते हैं। सारणा, वारणा में कुशल होते हैं। तेरापंथ की अपनी कुछ मौलिक मर्यादाएँ हैं, जैसेसर्व साधु-साध्वियाँ एक आचार्य की आज्ञा में रहें, विहार चातुर्मास आज्ञा से करें। अपना शिष्य न बनाएँ। आचार्य जिसे अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करें, सभी उसे सहर्ष स्वीकार करें।
All for one, one for all - एक के लिए सब, सबके लिए एक। ‘गण मेरा है, मैं गण का हूँ’ यह हर सदस्य का अमोघ मंत्र है। संघ का सुख-दु:ख व्यक्ति का सुख-दु:ख और व्यक्ति का सुख-दु:ख संघ का सुख-दु:ख है। व्यक्ति व संघ का यहाँ अन्योन्याश्रय संबंध है। संघ स्थविर कल्प साधना की प्रयोगशाला है। संघ में रहने वाला सामुदायिक जीवन जीता है। वह निरपेक्ष नहीं रह सकता। कदम-कदम पर उसे सहयोग की आवश्यकता होती है। आचार्य स्वयं सबकी चित्त समाधि के प्रति जागरूक रहते हैं।
Navigator of Vitragata - यह वीतराग पथ का गाइड है। भगवान महावीर का शासन वीतरागता का शासन है। उसी शासन के आसन पर तेरापंथ आसीन है। प्राणी मात्र का अंतिम लक्ष्य हैवीतरागता। वीतराग को सिद्धि निश्चित प्राप्य है। तेरापंथ महावीर के सिद्धांतों का स्वयं भी अनुसरण करता है तथा दूसरों को भी अनुसरण की प्रेरणा देता है।
Talent - बौद्धिकता। आज का युग बौद्धिक व वैज्ञानिक युग है। केवल आध्यात्मिकता व केवल बौद्धिकता दोनों ही अपूर्ण है। आध्यात्मिकता के साथ बौद्धिक समाज ही उन्नति के शिखरों को छू सकता है। इस कंपीटीशन युग में मजबूती के साथ पाँवों को जमाए रखने में विचारों का खुलापन अति आवश्यक है। तेरापंथ के आचार्यों ने मूल को सुरक्षित रखते हुए परिवर्तन व नएपन का स्वागत किया है। युगप्रधान आचार्य तुलसी व आचार्य महाप्रज्ञ के टेलेंट ने ही आगम संपादन, समण श्रेणी जैसे अभूतपूर्व कार्य करके विश्व के समक्ष समय-समय पर कुछ-न-कुछ नया प्रस्तुत किया है।
History of Struggles - संघर्षों का इतिहास दुनिया में नए चिंतन का स्वागत प्राय: विरोध से होता है। आचार्य भिक्षु को पाँच वर्षों तक पर्याप्त भोजन-पानी नहीं मिला। स्थान प्राप्ति के लिए जूझना पड़ा। प्रथम विश्राम श्मशान में व प्रथम चातुर्मास अँधेरी ओरी में करना पड़ा। सिर पर ठोले व छाती में मुक्के भी खाने पड़े। घोर अपमान व तिरस्कार सहन किया। इन सब स्थितियों में भी वह लौह-पुरुष काँटों में गुलाब की तरह मुस्कराता रहा।