वर्धापना में शासन माता को भावों का उपहार
साध्वी मलयप्रभा
अमृतोत्सव मनोनयन का, गण आँगन त्योहार है
सति शेखरे महाश्रमणी की, गूंजे जय-जयकार है,
वंदे श्रमणी वरं, वंदे सतीवरम्----
जन्म लिया कलकत्ता भू पर, कला नाम सूखकर सुंदर
चंदेरी की पुण्य धरा पर संस्कारित बहार भीतर
गण मुक्ता से भरा हुआ,
तेरे जीवन का ये समंदर
अर्हताओं के अंकन में,
चढ़ गई कनक कसौटी पर
श्री तुलसी से अभिमंडित तुम,
अष्टम पट अधिकार से
वंदे श्रमणी वरं, वंदे सती वरं
करें आरती शुभ भावों की, मंगल थाल सजाते हैं
भव्य भाल पर अक्षत कुंकुम, केसर तिलक लगाते हैं
अर्चन में आस्था के श्रीफल, रोली मोली सजाते हैं
घर-घर नंदा दिप जले, हैं नंद्यावर्त रचाते हैं
महा अभिषेक समंदर करता, भर-भर कलश अपार है।
वंदे श्रमणी वरं, वंदे सती वरं
समता, सेवा, विनय, समर्पण, की प्रतिमूर्ति सुखदाई
दूज चाँद ज्यों गरिमा महिमा, दिन दुनी बढ़ती पाई
गुरु भक्ति है रोम-रोम में, फर्क नहीं राई पाई
तीन-तीन गुरुओं की दृष्टि में, नंबर वन कहलाई
गण निष्ठा, मर्यादा निष्ठा, गुरु आज्ञा गलहार है।
वंदे श्रमणी वरं, वंदे सती वरं।
जीवन का हर पन्ना तेरा, जीने का विज्ञान सिखाएँ
श्रम की अकथ कहानी तेरी, वसुंधरा का कण-कण गाए
प्रवचन का हर लब्ज तुम्हारा, श्रोता को सरसब्ज बनाएँ
भक्त हृदय तेरी सन्निधि में माँ जैसी ममता पाए।
पा नेतृत्व सलौना तेरा, महके गण मंदार है।
वर्धापन में शासन माता भावों का उपहार है
रहो निरामय युग-युग जिओ उर उर की पुकार है
विनय प्रणत हम रहे चरण में भर दो ये संस्कार है
पूर्ण सदी पर लगे कुंभ का मेला यह मनुहार है
असाधारण छावँ रहे श्री महाश्रमण दरबार में॥
लय : आओ बच्चो---