जीवन में पदार्थों के प्रति रागात्मक मोह नहीं रहे : आचार्यश्री महाश्रमण
बीदासर, 15 फरवरी, 2022
अध्यात्म जगत के महान सूर्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मुख्य प्रवचन में मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि शास्त्रकार ने आसक्ति और अनासक्ति को एक उदाहरण से समझाने का व्यावहारिक प्रयास किया है कि आसक्ति और अनासक्ति कैसी होती है? एक उदाहरण से समझाया कि जैसे एक मिट्टी के सूखे गोले को दीवार पर फेंकते हैं, तो वह दीवार से टकराकर नीचे गिर जाता है, पर एक गीली मिट्टी के गोले को दीवार पर फैंका जाए तो वह दीवार पर चिपक जाता है। आसक्ति आद्र मिट्टी और अनासक्ति शुष्क मिट्टी के गोलक के समान है। हम शरीरधारी हैं, शरीर को टिकाने का प्रयास भी किया जाता है। प्रवृत्ति भी होती है। प्रवृत्ति करेंगे तो क्या बंधन नहीं होगा? प्रवृत्ति के बिना जीवन चलना भी मुश्किल है। इसके बीच का मार्ग हैअनासक्ति। पदार्थों में अनासक्ति रखो। व्यक्तियों में भी अवांछनीय आसक्ति मत रखो। इतना सा क्रम हो जाए तो बंधन से काफी बचाव हो सकता है। मन भी मनुष्यों के बधन का कारण बनता है। मन ही मुक्ति का कारण बनता है। विषयासक्त मन बंध कराने वाला होता है। विषयमुक्त मन मुक्ति दिलाने वाला होता है। मन को भाव भी माना जा सकता है।
हमारा धर्मसंघ व्यवस्थापक रूप से अनासक्ति को प्राप्त है। कारण शिष्य प्रथा नहीं है, हमारे पास जो भी उपकरण है, वो भी मेरे नहीं है। पद का उम्मीदवार नहीं बनना। वो भी अहंकार से बचने का प्रयास हो गया है। संघ में कोई है, तो हमारा धार्मिक संबंध है, पर संघमुक्त होने पर वह संबंध भी नहीं रहता है। हमारे जीवन में पदार्थों के प्रति रागात्मक मोह नहीं रहे। साधु के तो खुला बारणा रहे। गीत के पद्य का सुमधुर संगान किया। हाथ में माला और मुँह में बात हो। जिस समय जो अपेक्षा हो कर लें। जीवन में खुलापन हो। अनासक्तता हमारी साधना की एक महत्त्वपूर्ण चीज है। हम सब यात्री हैं। साधना के साथ परोपकार का काम करते रहें। गुरुकुलवास का साझ हो या सिंघाड़ा रीढ़ की हड्डी बनकर रहे। सेवा भावना से साथ वालों को संभालते रहें। मुनि हेमराजजी स्वामी व मुनि जीत के घटना प्रसंग को समझाया। अग्रणी-सहवर्ती का संबंध ऐसा हो। हम सबमें अनासक्ति का भाव रहे, व्यवहार भी अच्छा रहे। सेवा का भाव रहे। सिंघाड़े-साझ की व्यवस्था अच्छी रहे। इतना हम ध्यान रखें, यह काम्य है। आज चतुर्दशी है, पूज्यप्रवर ने हाजरी का वाचन करवाते हुए प्रेरणाएँ प्रदान करवाई। अच्छा प्रतिक्रमण करना ऊँची साधना है। आत्मा का स्नान करें। ये चारित्र को शुद्ध रखने वाले होते हैं। आलोयणा की कामना मन में रहे। आलोयणा का आधार है, ॠजुता। पाँचों मर्यादाएँ हमारे धर्मसंघ के स्तंभ हैं। केवली जाने वही सत्य है। संघ की मान्यता को स्वीकार करें। सुगम मध्य मार्ग से चलें। चित्त समाधि रखें। कोई साधु-साध्वीगण दलबंदी न करें। छल-कपटपूर्वक गण में न रहें। सबमें सौहार्द अच्छा रहे। छोटे संतों ने लेख पत्र का वाचन किया। पूज्यप्रवर ने तीन-तीन कल्याणक बख्शीश करवाए। सामुहिक लेख पत्र का वाचन हुआ। पूज्यप्रवर ने 10 वर्ष के संयम पर्याय या बीस वर्ष की उम्र वाली साध्वियों को आगे बुलाकर प्रेरणा प्रदान करवाई। सभी को तीन-तीन कल्याणक बख्शीश करवाए। बीदासर नगरपालिका के सदस्यों ने पूज्यप्रवर के दर्शन कर धन्यता का अनुभव किया। पूज्यप्रवर को अभिनंदन पत्र समर्पित किया गया। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया कि बीदासर नगर में शांति रहे। लोगों में मैत्री भाव रहे। नशे से लोग मुक्त रहने का प्रयास करें। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि सरकार की गाईड लाइन आ गई है। कल से पूज्यप्रवर का प्रवचन श्रावक समाज के समूह रूप में हो सकेगा।