समस्याओं के समाधान के लिए महत्त्वपूर्ण है सकारात्मक चिंतन : आचार्यश्री महाश्रमण
बीदासर, 17 फरवरी, 2022
बीदासर प्रवास का आज का अंतिम दिन। संयम के सुमेरू आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन आगम वाङ्मय में एक आगम हैउत्तरज्झयणाणि जिसे हिंदी में उत्तराध्ययन कहा जाता है। अनेक साधु-साध्वियाँ इसे पूर्णरूपेण अथवा अंशरूपेण कंठस्थ भी करते हैं। स्वाध्याय के लिए अच्छा माध्यम यह आगम बन सकता है। सारे सूत्रों को कंठस्थ करना मुश्किल लगे तो इसका दसवाँ, बत्तीसवाँ और उनत्तीसवाँ अध्याय तो कंठस्थ करना ही चाहिए। इस आगम में अनेक प्रकार की बातें हैं। एक ओर जहाँ तत्त्व ज्ञान की बातें भी इस आगम में उपलब्ध होती है। 36वाँ अध्ययन देख लें, 28वाँ भी देख लें। अध्यात्म साधना के दिशा निर्देश भी इस आगम के 32वें अध्ययन में प्राप्त होते हैं। 29वें अध्ययन में घटना प्रसंग भी है। इस आगम का अर्थ भी ज्ञात हो और फिर हम उसका स्वाध्याय करें। एक विकास की दिशा में गति हो सकती है। हमारे पैर गति के मानो साधन हैं, तो हम गति-प्रगति करें। अध्यात्म की साधना में आगे बढ़ें। साधु के 22 परिषह होते हैं, उनको सहने का सुंदर दिग्दर्शन इस आगम के दूसरे अध्ययन से प्राप्त किया जा सकता है। 10वें अध्ययन का एक चरण तो बार-बार रिपीट होता रहता है। थोड़े में एक प्रमाद से विरत रहने की प्रेरणा इससे प्राप्त की जा सकती है। हमारे जीवन में प्रवृत्ति के ये तीन साधन हैंमन, वचन और शरीर। मन तो भले दिखाई न दे पर वह चिंतन, मनन, स्मृति का माध्यम यह मन बनता है। मन से कई बार अनावश्यक चिंतन भी होता रहता है। कितना समय अनावश्यक चिंतन में बीतता होगा। सोचने की क्षमता का होना भी एक विकास का प्रतीक है। दुनिया में अनंत प्राणी ऐसे हैं, जिनके पास सोचने की क्षमता ही नहीं है। वे दुनिया के अविकसित प्राणी हैं, जिनके पास वर्तमान में मन की उपलब्धि नहीं है। हमारे पास मन है, ये हमारे विकास का एक सक्षम प्रमाण है। इसका हमें गौरव है। ज्यादा धर्म वो ही प्राणी कर सकता है, जो मन वाला होता है। पुण्य और पाप दोनों काम मन वाला प्राणी करता है। अमनस्क प्राणी न तो ज्यादा धर्म कर सकते हैं और न ज्यादा पाप कर सकते हैं। हम अपने मन को धर्म का साधन बनाएँ। जितना संभव हो, वह पाप का साधन न बन सके, ऐसा प्रयास करें। एक स्थिति वह भी आती है, जब आत्मा मनोनीत हो जाती है। मन से ऊपर उठ जाती है। ऊँचे विकास की बात है, परंतु मनस्वी होना, मनवान होना, मन वाला होना भी एक सीमा तक का विकास है। मन से आदमी सोचता है। सोचना भी एक कलापूर्ण कार्य हो सकता है। कैसे सोचें? सोचने के भी अनेक तरीके, स्थितियाँ हो सकती हैं। सोचने का तरीका प्रशस्त हो, तो आदमी अच्छा सोच सकता है। सोचने का प्रशस्त तरीका है कि अनावश्यक विचार-चिंतन न हो इसका प्रयास करें। दीर्घश्वास का प्रयोग कर लें। चिंतन के समय आवेश में नहीं होना चाहिए। शांति रहनी चाहिए। सोचना मेरा सही हो, उचित हो यह लक्ष्य रहना चाहिए। न्यायपूर्ण बात हो तो सोचने का निष्कर्ष अच्छा आ सकता है। चिंतन भी समय पर हो, दिन-भर नहीं। गुरुदेव तुलसी का कथन थाचिंता नहीं चिंतन करो। चिंता में दु:ख का भाव हो सकता है। चिंतन में समाधान निकल सकता है। कई बार अचिंतन में से जो स्फूरणा होती है, उसका भी महत्त्व है। नवनीत निकलता है। आदमी सुखी रहे, वर्तमान में संतुष्ट रहे। यह एक घटना प्रसंग से समझाया कि जो जीना जानता है, उसे मारने का अधिकार किसी को नहीं है। विरोध हो सकता है, प्रतिकूलताएँ आ सकती हैं, फिर भी आदमी समता-शांति में रहे। ‘जो हमारा हो विरोध, हम उसे समझें विनोद’ यह चिंतन का काफी प्रशस्त स्तर है। नकारात्मक चिंतन में व्यर्थ न जाएँ। दुनिया में कई स्थितियाँ हैं, मानो अच्छे के लिए होती हैं। यह भी एक प्रसंग से समझाया कि जो प्राप्त है, उसमें संतुष्ट रहकर समता-शांति से रहें। जो नहीं है, उससे दु:खी न बनें। आदमी का चिंतन का तरीका अच्छा हो तो निष्पत्ति भी अच्छी आ सकती है। आदमी सुख-शांति में रह सकता है। बीदासर में हम मर्यादा महोत्सव के आयोजन के संदर्भ में आए थे। वह कार्य अच्छी तरह संपन्न हो गया। संतोषपूर्ण प्रवास संपन्न हो रहा है। समाधि केंद्र में मर्यादा महोत्सव का आयोजन होना विशेष बात है। बीदासर की जनता में भी खूब धर्म की अच्छी भावना बनी रहे। चतुर्मास की आगे प्रतीक्षा रखो। चतुर्मास करने का मेरा मनोभाव भी है। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में कन्हैयालाल गिड़िया, कन्हैयालाल पटावरी, तेरापंथ सभा बीदासर के अध्यक्ष अशोक बोथरा, प्रेरणा जैन, लक्ष्मीपत बोथरा, अदिति शेखाणी, नवनीत बांठिया, बच्छराज बैंगानी, रूपचंद दुगड़ ने अपनी भावनाएँ व्यक्त की। जीतो चेयरमैन गणपत चौधरी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। भाजपा जिला अध्यक्ष प्रतिभा घनावत ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। बीदासर की तेरापंथ महिला मंडल, कन्या मंडल, सूरजमल बैंगाणी, बीदासर परिषद, भावना-भाग्यश्री छाजेड़, तेरापंथ सभा, अनिशा बैद, मनोज नाहर ने गीतों की प्रस्तुति दी। पूज्यप्रवर ने व्यवस्था दायित्व स्थानांतरण कर फरमाया कि बीदासर का दायित्व भीलवाड़ा से चल रहा है। अब आगे दिल्ली जाने का लक्ष्य है। बीदासर के दायित्व संपन्नता के संदर्भ में और दिल्ली वालों के दायित्व ग्रहण के संदर्भ में आध्यात्मिक भावना के रूप में मंगलपाठ की कृपा करवाई। जीतो भी जैन समाज की एक बहुत महत्त्वपूर्ण, गरिमापूर्ण, सक्षम संस्था प्रतीत हो रही है। जीतो के द्वारा भी धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा होती रहे। बीदासर का भी नैतिक विकास होता रहे। बीदासर वासियों की ओर से दायित्व ध्वजा स्थानांतरण करते हुए दिल्ली वालों को सुपुर्द किया। अहिंसा यात्रा समापन बैनर का अनावरण किया गया। उपासक महावीर दुगड़ ने अपनी भावना अभिव्यक्त की।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।