निर्मल भक्‍ति से शक्‍ति की जागरणा हो सकती है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

निर्मल भक्‍ति से शक्‍ति की जागरणा हो सकती है : आचार्यश्री महाश्रमण

फतेहपुर, 22 फरवरी, 2022
अहिंसा यात्रा के साथ महातपस्वी आचार्यप्रवर द्रुत गति से दिल्ली की ओर गतिमान हैं। प्रात: लगभग 13 किमी का विहार कर फतेहपुर स्थित शांति माता मंदिर के प्रांगण में पधारे।
मुख्य प्रवचन में महामहिम आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि तीर्थंकरों को सूत्र में नमस्कार किया गया है। भगवान ॠषभ से लेकर भगवान महावीर तक के तीर्थंकरों को नमस्कार करने का मतलब है, अर्हतों को नमस्कार किया गया है। धार्मिक जगत में भक्‍ति की भी बात आती है। आराध्य को नमस्कार करना भक्‍ति जैसा लगता है। नमस्कार महामंत्र में भी पाँच विशिष्ट आत्माओं को नमस्कार किया गया है। पाँचों में णमो है। भक्‍ति निर्मल और आंतरिक हो, उसका महत्त्व है। भक्‍ति किसी आत्मा के प्रति, आराध्य के प्रति भी हो सकती है, तो भक्‍ति किसी तत्त्व-सिद्धांत और आदर्श के प्रति भी हो सकती है। भक्‍ति को मैं दो प्रकारों में बाँटता हूँव्यक्‍ति परक और तत्त्व परक। अर्हतों, सिद्धों, आचार्यों, गुरुओं, उपाध्यायों और साधुओं के प्रति भक्‍ति व्यक्‍तिपरक हो जाती है। तत्त्वपरक भक्‍ति जैसे सच्चाई, यथार्थ तत्त्व, साधना, ईमानदारी के प्रति भक्‍ति है। बाह्य रूप में भक्‍ति का महत्त्व बहुत कम होता है।
आज सती माता मंदिर जो दुगड़ परिवार से जुड़ा मंदिर है, कुल देवी का आस्था का स्थान है। मैं संसारपक्ष में दुगड़ परिवार से हूँ। यहाँ आना हुआ है। कुल देवी का भी महत्त्व होता है। दीक्षा लेने से पहले वैरागी को भी धोक दिलाई जाती है। जैन दर्शन भी मानता है कि दिव्य शक्‍तियाँ भी होती हैं। भक्‍ति में शक्‍ति होती है। भगवान तो भोले होते हैं, यह एक कथानक से समझाया कि असली भक्‍ति भीतर में होती है। हमारी आंतरिक आध्यात्मिक भक्‍ति, देव, गुरु, धर्म के प्रति रहे। भक्‍ति जहाँ निर्मल होती है, वहाँ शक्‍ति की जागरणा हो सकती है।भक्‍ति और शक्‍ति में संबंध है। व्यक्‍तिगत और आदर्श दोनों पर भक्‍ति हो। तत्त्वपरक भक्‍ति हो, यह एक प्रसंग से समझाया कि ईमानदारी के प्रति भक्‍ति हो। हमारे जीवन में अध्यात्म की द‍ृष्टि से भक्‍ति हो और अपने आराध्य के प्रति निर्मल समर्पण का भाव हो। फतेहपुर के लोगों में बहुत अच्छी धार्मिक भावना रहे। सद्भावना, नैतिकता, नशामुक्‍तिये तीन सूत्र हम अहिंसा यात्रा में बताया करते हैं। स्थानीय लोगों में तीनों संस्कार पुष्ट रहें। जीवन अच्छा है तो आगे सुगति हो सकती है। अणुव्रत के छोटे-छोटे नियम गृहस्थों के जीवन में आते हैं, तो गृहस्थों का जीवन बहुत अच्छा बन सकता है। समाज अच्छा रहता है, आत्मा अच्छी रहती है। श्रावक समाज में धार्मिक भावना बनी रहे। जीवन अच्छा रहे, ताकि अच्छा आत्मिक विकास हो सके। अध्यक्ष सुबोध दुगड़, स्वागताध्यक्ष केशीमल दुगड़ ने अपनी आस्थासिक्‍त अभिव्यक्‍ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मंडल ने स्वागत गीत का संगान किया। अहिंसा यात्रा के पथ में अपेक्षित परिवर्तन की सूचना दी गई। परिवर्तित कार्यक्रमानुसार आचार्यप्रवर रामगढ़, रतननगर और चुरू का स्पर्श करते हुए शीघ्र दिल्ली की ओर पधारेंगे। इस क्रम में आचार्यप्रवर का मार्च के प्रथम सप्ताह में दिल्ली पदार्पण हो सकता है। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।