साधना के द्वारा आत्मा का कल्याण करने का प्रयास करें : आचार्यश्री महाश्रमण
दिल्ली, 6 मार्च, 2022
महासंकल्प बली आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आज सायं लगभग 6 बजे शासनमाता साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी को दर्शन दिराने की कृपा करवाई। आज का लगभग 47 किमी का प्रलंब विहार तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्यों में प्रथम बार हुआ। पूज्यप्रवर के संकल्प बल को शत-शत नमन्। पूरे दिन विहार के बावजूद भी आचार्यप्रवर ने प्रवचन का क्रम जारी रखा और सायंकाल में मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि एक शब्द है, जो दो शब्दों से बना हुआ हैआत्मानुशासन। आत्मा और अनुशासन। यानी अपने आप पर अपना अनुशासन। इस बारे में धातव्य है कि आत्मा तो दिखाई नहीं देती, पर शरीर तो दिखाई देता है। वाणी को भी हम जानते हैं, काम में लेते हैं। मन को भी जानते हैं। इंद्रियाँ भी हैं। अगर हम अपने शरीर पर अनुशासन कर लें, वाणी, मन व इंद्रियों पर अनुशासन कर लें तो इनका परिणाम आएगा आत्मानुशासन। आत्मा से ये सब जुड़े हुए हैं। शरीर से अशुभ-गलत प्रवृत्ति न करें। अशुभ काम योग से बचें। अपने अवयवों का अनुशासन करें, यह दो कछुओं के प्रसंग से समझाया कि शरीर पर अनुशासन होता है तो पाप रूपी कछुआ नहीं आ सकता है। प्रेक्षाध्यान की साधना में शरीर की स्थिरता, शिथिलता का सुझाव दिया जाता है। जबान पर लगाम रखें, भाषा पर संयम रखें। अनपेक्षित न बोलें। कपट-झूठ से बचें तो वचनोनुशान सिद्ध हो सकता है। मन से न अशुभ चिंतन करें, न अनावश्यक सोचें। ध्यान में एकाग्रता के प्रयोग भी कराए जाते हैं। दीर्घ श्वास के प्रयोग से मन पर अनुशासन हो सकता है। पाँचों इंद्रियों का संयम रखना, दुरुपयोग न करना इंद्रियानुशासन हो जाता है। जो काम की बात हो उसे किया जा सकता है। आत्मानुशासन प्राप्त हो सकता है।
मनुष्य जन्म दुर्लभ भी है और महत्त्वपूर्ण भी है। इसका हम अच्छा लाभ उठाने का प्रयास करें। साधना करने का, आत्मा का कल्याण करने का प्रयास करें। मोक्ष की उत्कृष्ट साधना मनुष्य ही कर सकता है। गृहस्थ में रहते हुए धर्म-संयम को भी याद रखें। धंधों में से भी समय निकालें। व्यवहारों और आचरणों में संयम हो। सामायिक की साधना की जा सकती है। सुमंगल साधना को भी स्वीकार किया जा सकता है, वह तो उच्च कोटि की गृहस्थ जीवन की साधना है। आचार्य भिक्षु से जुड़ा धर्मसंघ है। सभी अध्यात्म की दृष्टि से साधना करें। जैन-अजैन सभी अध्यात्म की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करें। यह मानव जीवन प्राप्ति का एक फल हो सकता है। धन तो इस जीवन के लिए है, पर धर्म तो आगे भी काम आ सकेगा। धर्म को याद रखें। धन के अर्जन में भी धर्म हो। ज्ञान, दर्शन, चारित्र की आराधना सच्चा धर्म हो। उसका अर्जन होना चाहिए। आगे के लिए धर्म का टिफिन तैयार करें। आदमी को धर्म का संचय करते रहना चाहिए, ताकि आगे का रास्ता प्रशस्त बन सके। इस बार अन्य तरीके से दिल्ली आए हैं। साध्वीप्रमुखाश्री जी से मिलना हो गया। डालमचंद बैद के घर में भी रहने का मौका मिल गया। बैद परिवार में भी खूब धर्म की साधना चलती रहे। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में डालमचंद बैद ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।