महात्मा बनें या न बनें परंतु सदात्मा जरूर बनें: आचार्यश्री महाश्रमण
अचीनाताल, 4 मार्च, 2022
सवा ग्यारह घंटे के दिन में साढ़े आठ घंटे विहार कर महान परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमण जी अचीनाताल पधारे। मुख्य प्रवचन में तेरापंथ धर्मसंघ के कल्पतरु आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी के जीवन में अनेक वृत्तियाँ होती हैं, उनमें एक वृत्ति है सरलता-ॠजुता की। ॠजुता का विलोम शब्द माया है। माया यानी छल-कपट, ये करना भी एक वृत्ति है। ये दुर्वृत्ति है। सरलता सुवृत्ति है।
झूठ और कपट का संबंध, सरलता और सच्चाई का संबंध होता है। सरल व्यक्ति की शैद्धि-शुद्धि होती है। जिसके जीवन में धर्म होता है, वह निर्वाण को प्राप्त होता है। धर्म सरल-ॠजु व्यक्ति के जीवन में ठहरता है। जो महात्मा होता है, उनके मन में, वाणी में और कर्म में एकरूपता होती है। दुरात्मा लोगों के मन में, वाणी में और आचरण में भिन्नता होती है। महात्मा बनना तो ऊँची बात है, हम सदात्मा के रूप में रहें। पापों से बचकर रहें, सदाचार के मार्ग पर चलें। संत में तो सरलता-शांति होनी ही चाहिए। संत वह होता है, जो शांत होता है।
संतों के भी नेतृत्व करने वाले संत हुए परम पूज्य कालूगणी। आज फाल्गुन शुक्ला द्वितीया है जो पूज्य कालूगणी के जन्म के साथ जुड़ा हुआ है। कालूगणी का जन्म वि0सं0 1933 में हुआ था, ताल छापर में। वे बालावस्था में ही दीक्षित हो गए। पूज्य कालूगणी के जन्म के समय के प्रसंग समझाए। पूज्य कालूगणी के दो शिष्य हमारे धर्मसंघ के आचार्य बने। युगप्रधान आचार्य तुलसी और युगप्रधान आचार्यश्री महाप्रज्ञजी। दोनों आचार्यों का पूज्य कालूगणी के प्रति विनम्र-श्रद्धा का भाव था। कालूगणी की भी मघवागणी के प्रति अच्छी श्रद्धा-विनम्रता के भाव थे। कालूगणी ने संस्कृत भाषा का भी हमारे धर्मसंघ में विकास किया था। मुनि नथमलजी-बागौर, मुनि बुद्धमल जी स्वामी अच्छे विद्वान तत्त्वज्ञ संत थे। मुनि गणेशमल जी-गंगाशहर, मुनि सोहनलाल जी-चाड़वास, मुनि पूनमचंदजी-डूंगरगढ़ जैसे संत पूज्य कालूगणी से दीक्षित संत थे। अनेक और भी साधु-साध्वियाँ उनके करकमलों से दीक्षित हुए हैं। आज ही के दिन अणुव्रत आंदोलन का प्रारंभ, पारमार्थिक शिक्षण संस्था की स्थापना हुई थी। मैंने भी दीक्षा लेने का निर्णय करने से पहले परमपूज्य कालूगणी का जप किया था। वो दिन था भाद्रव शुक्ला छठ कालूगणी का महाप्रयाण दिवस था। मुझे तो धर्म का रास्ता मिल गया था। कालूगणी को पुण्यवान आचार्य के रूप में माना गया है। कालूगणी का निस्पृहता का भी उदाहरण है। पूज्य डालगणी ने उनका मनोनयन किया था।
आज हम उनके जन्म दिवस पर उनका स्मरण कर रहे हैं। उन्होंने संस्कृत भाषा को बढ़ावा दिया था। हमारे धर्मसंघ में कितने-कितने संस्कृतज्ञ चारित्रात्माएँ बन गए हैं। संस्कृत भाषा को जानने से आगमों का अध्ययन आसान हो सकता है। हमारे धर्मसंघ में ज्ञान, चारित्र, साधना का विकास होता रहे। पूज्य कालूगणी के जीवन से प्रेरणा लेते रहें। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।