आदमी को निरहंकार रहने का प्रयास करना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण
झज्जर (हरियाणा), 5 मार्च, 2022
अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने दिल्ली प्रवास के लिए संकल्प किया और अब लगभग दिल्ली के पास ही पहुँच रहे हैं। इतने बड़े-बड़े विहार को भी मामूली मान लेते हैं। पूज्यप्रवर की संकल्प शक्ति विराट और गजब की है। कहा गया हैचलते-चलते चलना भी आसान हो जाता है। करते-करते करना भी आसान हो जाता है। दु:खों का पहाड़ जब टूटता है आदमी पर, तो सहते-सहते सहना भी आसान हो जाता है। अखंड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमण जी 33 किलोमीटर का प्रलंब विहार कर झज्जर के राजकीय स्नातकोत्तर नेहरू महाविद्यालय पधारे। परम पावन ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी के भीतर अहंकार की वृत्ति भी होती है। हालाँकि सब मनुष्यों में अहंकार नहीं होता है, जो वीतराग बन चुके हैं, उनमें अहंकार नहीं होता। तात्त्विक भाषा में हमारे यहाँ चौदह गुणस्थान बताए गए हैं, वीतराग में अंतिम चार गुणस्थान होते हैं। वीतराग दो प्रकार के होते हैं, छद्मस्थ वीतराग और केवली वीतराग। छद्मस्थ वीतराग भी दो प्रकार के होते हैंउपशांत मोह वीतराग और क्षीण मोह वीतराग। ग्यारहवें गुणस्थान वाला उपशांत मोह छद्मस्थ वीतराग सराग बनता ही है। चारों कषाय भी उपशांत अवस्था से छूटकर आ जाते हैं। साधु में भी कुछ-कुछ अहंकार प्रगट रूप दिखाई दे सकता है। कारण साधु छद्मस्थ है, छठे गुणस्थान में है। सामान्य गृहस्थ में भी अहंकार हो सकता है। धन-संपदा, रूप, जाति, कुल, शक्ति, तप व सत्ता का घमंड हो सकता है। अपूर्ण ज्ञान वाला व्यक्ति अहंकार कर सकता है, पूर्ण ज्ञानी नहीं। अहंकार की प्रवृत्ति को पराजित करने के लिए मार्दव-मृदुता की अनुप्रेक्षा करनी चाहिए। विनम्रता का अभ्यास करना चाहिए, पद, पैसा और प्रतिष्ठा हमेशा रहे भी, इसका क्या भरोसा है। ये अहंकार का कारण न बने। पद तो आज है, पता नहीं कल रहे या न रहे, यह एक प्रसंग से समझाया कि आदमी के गुणों की योग्यता का पद ऊँचा रहे। ज्ञान का भी घमंड न करें। ज्ञान का और विकास करें। चेहरे की सुंदरता का भी ज्यादा महत्त्व नहीं होता है। आदमी की विद्वता, गुणवत्ता, सदाचार, साधना और चरित्र का ज्यादा महत्त्व है। हमारा व्यवहार, आचार, संस्कार प्रतिभा और ज्ञान का अधिक महत्त्व है, यह एक प्रसंग से समझाया कि कपड़ों का ज्यादा महत्त्व नहीं है, गुणों का अधिक महत्त्व है। आते समय कपड़ों का और जाते समय गुणों का सम्मान होता है।
अभिमान तो मदिरा-पान के समान है। हम गुणों से बड़े बनें। ज्ञान, सदाचार, चारित्र अच्छा रहे, घमंड न करके आदमी को निरहंकार रहने का प्रयास करना चाहिए। पद, पैसा, प्रतिष्ठा के घमंड में गृहस्थ न जाकर निरहंकारता में रहने का लक्ष्य रखें, यह काम्य है। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।