लोभ कम होने से ईमानदारी का संस्कार पुष्ट होता है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

लोभ कम होने से ईमानदारी का संस्कार पुष्ट होता है : आचार्यश्री महाश्रमण

दुलानिया, 2 मार्च, 2022
दिल्ली की ओर द्रुत गति से गतिमान परमपूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आज कुल 27 किलोमीटर विहार किया। प्रात:कालीन 17 किलोमीटर का विहार कर दुलानिया के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में मुख्य प्रवचन में मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि आर्षवाणी का यह एक श्‍लोक है, जिसमें क्षमा का सागर समाहित है। क्षमा की बात बताई गई है कि मैं सब जीवों को खमाता हूँ और सब जीव मुझे क्षमा करें। सर्व प्राणियों के प्रति मेरी मैत्री है, किसी के साथ मेरा वैर नहीं है। कितना भावपूर्ण यह श्‍लोक है। दिन-रात में एक ऐसा श्‍लोक उच्चरित हो जाए जो क्षमा की द‍ृष्टि से अच्छा रह सकता है, भाव शुद्ध हो जाए।
क्षमा का अर्थ हैसहिष्णुता। आदमी की यह कमजोरी होती है, कुछ प्रतिकूल स्थिति सामने आती है और वह कभी-कभी असहिष्णु बन जाता है। आवेश या आर्तध्यान करने लग जाता है। पर उस समय आदमी क्षमा रखे। जिस आदमी के हाथ में क्षमा रूपी खड्ग है, दुर्जन उसका क्या बिगाड़ेगा। घास-फूस है, वहाँ चिनगारी की लपटें उठ सकती हैं। परंतु केवल मैदान है, वहाँ आग लगे तो अग्नि कुछ समय में शांत हो जाएगी। कोई आदमी कुछ कह रहा है, गाली दे रहा है, तो व्यक्‍ति सोचे कि इसकी बात में सच्चाई है या नहीं। अगर झूठी बात तो गुस्सा क्यों करूँ और सच्चाई है तो स्वयं की गलती का परिष्कार करूँ। बात सही हो या झूठी गुस्सा नहीं करना चाहिए। शांति-क्षमा रखना बड़ी चीज है। शक्‍ति होते हुए भी क्षमा रखना जीवन का आभूषण होता है। गुस्सा करना जीवन का दूषण होता है। परिस्थिति आती है, तब आदमी शांति रख ले, वह विशेष बात होती है।
पत्थर का जवाब ईंट से दो ये एक नीति हो सकती है, दूसरी नीति है, ईंट का जवाब फूलों से दें। साधु का स्वागत सचित-अचित फूल से नहीं वंदना-नमस्कार से किया जा सकता है। क्षमा धर्म भी है, अध्यात्म का मर्म भी है। क्षमा कर्म-प्रवृत्ति भी है। और शर्म भी है। सुख-शांति होती है। ऐसा क्षमा धर्म हमारे जीवन में रहे। पूज्यप्रवर आज पिलानी होकर पधारे। पूज्य गुरुदेव तुलसी और बिडला के जीवन प्रसंग को समझाया। प्रेक्षाध्यान समता-प्रियता-अप्रियता का भाव वाला है। विद्यालयों में संस्कार-युक्‍त शिक्षा हो। कोरा ज्ञान आधा है। आचरण के साथ ज्ञान पूरा हो जाता है। विद्यार्थी में विद्या, विनय और विवेक भी आए। विद्या, विनय से शोभित होती है। इन तीनों गुणों से विद्यार्थी वीआईपी बन जाता है। हमारे में क्षमा के भाव रहें, यह काम्य है। पूज्यप्रवर ने अहिंसा यात्रा के तीन उद्देश्यों को समझाकर स्थानीय लोगों एवं अध्यापकों-विद्यार्थियों को स्वीकार करवाए। पूज्यप्रवर के स्वागत में स्कूल के प्राचार्य राजेंद्र बांगड़वाल, माता सेवा समिति से सत्यनारायण मेव ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।