कामना का विशुद्धिकरण हो तो कामना लाभदायी हो सकती है : आचार्यश्री महाश्रमण
टमकोर, 27 फरवरी, 2022
साधना के विशिष्ट योगीराज, महान दार्शनिक, तेरापंथ के दशम् अधिशास्ता, प्रेक्षाध्यान के प्रदाता आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी की जन्मभूमि टमकोर में उन्हीं के पट्टधर महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी का पदार्पण हुआ। पूज्यप्रवर का प्रवास महाप्रज्ञ इंटरनेशनल स्कूल में हुआ। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के परंपर पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अपने गुरु की अवतरण भूमि पर मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि सामान्य आदमी के भीतर कामना रहती है। कामना एक ऐसा रूप भी धारण कर लेती है या कर सकती है कि वह शल्य बन जाए, आशिविष के समान हो जाए। कामना का उदात्तिकरण-विशुद्धिकरण हो जाए तो कामना लाभदायी भी हो सकती है। आदमी के भीतर भौतिकार्षण या भोगाकर्षण होता है, कभी-कभी आदमी दूसरों के अनिष्ट की कामना भी कर सकता है, यह निकृष्ट कामना होती है। जब आदमी में कामना का प्रकृष्ट रूप हो जाए, मेरा भी कल्याण हो, दूसरों का भी कल्याण हो। सब प्राणी खुश रहें, सब निरामय रहे, सबका कल्याण हो, दुनिया में कोई दु:खी न रहे, यह एक उत्कर्ष कामना है। आदमी जन्म लेकर बचपन में रहता है, युवा भी होता है, कभी वार्धक्य को प्राप्त हो जाता है और एक दिन अलविदा कहकर चला जाता है। यह स्थिति जीवन की होती है। इनमें एक किनारा हैजन्म और दूसरा किनारा हैमृत्यु। दोनों किनारों के बीच में जो जीवन की सरिता प्रवाहित होती है, उसका महत्त्व हो सकता है। जब यह जीवन की सरिता पवित्रता के साथ प्रवाहित होती है, सम्यक् पुरुषार्थ इसके साथ रहता है, तब इसका महत्त्व होता है।
आज हम उस गाँव में आए हैं जिस गाँव को पवित्र सरिता वाले जीवन को जीने वाले व्यक्ति की जन्म-भूमि होने का गौरव प्राप्त है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी इसी टमकोर की भूमि में जन्मे थे। ऐसे महापुरुष के नाम से ये टमकोर गाँव भी महिमा मंडित-गरिमा भूषित बन गया है। हमारे संघ का भी सौभाग्य है कि ऐसे व्यक्ति धर्मसंघ को प्राप्त हुए हैं, जो धर्मसंघ का नेतृत्व करने वाले बने थे।
मैं वैसे जन्म लेने को ज्यादा महत्त्व नहीं देता हूँ। दीक्षा को ज्यादा महत्त्व देता हूँ। जन्म तो सभी लेते हैं, दीक्षा कोई-कोई लेता है। महाप्रज्ञ जी की दीक्षा सरदारशहर में हुई थी। उनका ननिहाल पक्ष भी सरदारशहर था। अंतिम श्वास की भूमि भी सरदारशहर ही है। जीवन में व्यक्ति क्या करता है, उसका महत्त्व है। दीक्षा के बाद उनका व्यक्तित्व, कृतित्व सामने आया। वे एक दार्शनिक संत के रूप में उभरकर सामने आए। आचार्य तुलसी ने भी उनको बहुत आगे बढ़ाया। आचार्य तुलसी ने उनको युवाचार्य तो बनाया ही, अपनी विद्यमानता में उन्हें आचार्य पद पर भी स्थापित कर दिया था। इस माने में आचार्य महाप्रज्ञजी विलक्षण आचार्य हैं। आगम संपादन उनका एक महान् अवदान है। प्रेक्षाध्यान पद्धति उन्होंने आगे बढ़ाई थी। जैन विश्व भारती द्वारा टमकोर जैसे गाँव में ऐसा विद्यालय आज हमें देखने को मिला है। यहाँ के विद्यार्थी को सामान्य पाठ्यक्रम के साथ जीवन-विज्ञान, जैनिज्म, तेरापंथिज्म यथा समय पढ़ाया जाता रहे। जीवन अच्छा बने, उसके उपक्रम भी यहाँ चलते रहें। आचार्यश्री तुलसी ने अनेक नए-नए अवदान दिए, उन्हें संपृष्ट करने में आचार्य महाप्रज्ञजी का भी योगदान रहा है। कुछ संदर्भों में आचार्य तुलसी व आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी को अभिन्न या नैकट्य माना जा सकता है। तुलसी में महाप्रज्ञ को देखो, महाप्रज्ञ में तुलसी को देखो। साध्वीप्रमुखाश्री जी का ननिहाल पक्ष भी यहीं है। मेरा भी पड़ननिहाल टमकोर होता है। हम साध्वीप्रमुखाश्री जी के स्वास्थ्य के प्रति भी मंगलकामना करते हैं। ‘आरोग्ग-बोहि लाभं, समाहिवर मुत्तमं दिंतु।’ का जप करवाया। अनेक चारित्रात्माएँ भी टमकोर से जुड़े हैं। आज पता चला है कि साध्वीवर्या भी समण श्रेणी के साथ यहाँ पढ़ाती थीं। यह विद्यालय विद्यार्थियों को ज्ञान और संस्कार प्रदान कराता रहे, यह मंगलकामना है। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में टमकोर के मुनि देवेंद्र कुमार जी, मुनि नम्र कुमार जी, समणी निर्मल प्रज्ञा जी ने अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम में विशेष रूप से उपस्थित झुंझुनू के सांसद नरेन्द्र कुमार खिंचड़ ने कहा कि मैं समस्त जिलावासियों की ओर से महातपस्वी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का हार्दिक-स्वागत एवं अभिनंदन करता हूं। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जन्मभूमि की पावन धरा आपके पदार्पण से मानों स्वर्ग बन गई है। मुझे आपश्री के दर्शन कर ऐसा लगा कि मैंने साक्षात् भगवान के दर्शन कर लिए। मेरा आपसे अनुरोध है कि आपश्री के चरण बार-बार हमारी धरती पड़ते रहें और आपश्री का निरंतर आशीर्वाद हम सभी को प्राप्त होता रहे। इसके उपरान्त मुमुक्षु नुपूर, प्रतापसिंह चोरड़िया, भीखमचंद नखत, सुशील चोरड़िया, केशरीचंद चोरड़िया तथा स्कूल के प्रििंसपल लोकेश तिवारी ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्कूल की छात्रा मंजू ने अंग्रेजी भाषा में अपनी अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल तथा तेरापंथ युवक परिषद-टमकोर के सदस्यों ने स्वागत गीत का संगान किया। आचार्य महाप्रज्ञ इण्टरनेशनल स्कूल के विद्यार्थियों ने दो कार्यक्रमों की भावपूर्ण प्रस्तुति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल की सदस्याओं द्वारा संकल्पों का उपहार अर्पित कर ‘नानेरो रे दही रोटिया’ पुस्तक श्रीचरणों में लोकार्पित की। डॉ जुल्फीकार ने भी अपनी पुस्तक भी पूज्यचरणों में लोकार्पित की। आचार्यश्री ने दोनों पुस्तकों के संदर्भ में मंगलकामनाएं प्रदान कीं। लगभग चार बजे के आसपास आचार्यश्री ने स्कूल परिसर से टमकोर गांव की प्रस्थान किया। बुलंद जयघोष से गुंजायमान वातावरण के बीच आचार्यश्री टमकोर गांव स्थित तेरापंथ धर्मसंघ के दसमाधिशास्ता आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जन्मस्थली में पधारे। वहां आचार्यश्री ने कुछ समय ध्यान करने के उपरान्त उपस्थित जनसमूह को मंगल संबोधन भी प्रदान किया। तदपुरान्त आचार्यश्री कुल लगभग दो किलोमीटर का विहार कर रात्रिकालीन प्रवास हेतु कोठारी परिवार के निवास स्थान में पधारे। आचार्यश्री के स्वागत में टमकोर से संबंधित मुनि नम्रकुमार जी तथा समणी पुण्यप्रज्ञा जी ने गीत का संगान किया। मुनि देवेंद्रकुमार जी व समणी निर्मलप्रज्ञा जी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। आचार्य महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति, टमकोर के अध्यक्ष अजीत चोरड़िया, आचार्य महाप्रज्ञ इंटरनेशनल स्कूल के चेयरमैन रणजीत सिंह कोठारी व जैन विश्व भारती के अध्यक्ष मनोज लुणिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन समणी प्रतिज्ञाप्रज्ञा जी ने किया।