अनहद है उपकार

अनहद है उपकार

शासनमाता आपरो विरह सह्यो नहीं जाय।

बगिया सींची स्नेह स्यूं क्यूं दीन्ही विसराय॥

 

पल पल छिन छिन थे करी, साध्वी गण रिछपाल

दुर्गा माँ ज्यूं थे रह्या, बणकर रक्षा ढ़ाल

नेहिल निजरां स्यूं करी, जन-जन री सम्भाल॥1॥

 

दरिया वत्सलभाव रा, करुणा रा आगार

खूब बढ़ाई सम्पदा, गणलक्ष्मी अवतार

श्रुतदेवी बणकर भर्यो शासण रो भंडार॥2॥

 

मीठी मीठी बात स्यूं, दिल में भरता जोश

सारण वारण सांतरी, देता अभिनव तोष

गूंजे धरती अम्बर में, महाश्रमणी महाघोष॥3॥

 

गुरु तुलसी स्यूं है मिल्यो, अनमोलो वरदान

पौरुष दीप्यो संघ में, शिखर चढ्यो सम्मान

अमर खजानो गुणरत्नां रो, कियां करां गुणगान॥4॥

 

तेरापथ री चाँदणी, अनहद है उपकार

पहरायो गुरुवरत्रयी यश कीरत रो हार

असाधारण साध्वीप्रमुखाश्री मुख रो उपहार॥5॥

 

लय : स्वामीजी आओ देखल्यो---