आओ शीश झुकाएँ
शासनमाता साध्वीप्रमुखा गौरव गाथा गाएं।
मिली प्रेरणाएं जो तुमसे जीवन पंथ बनाएं
ॠणी रहेगा संघ हमेशा सेवाएं तेरी अनमोल।
हो जाते आश्वस्त ह्नदय सुन तेरे मधुरिम मंजुल बोल
कार्यकला थी अद्भुत तेरी कैसे उसे भूलाएं।
जागरूकता का सुंदरतम उदाहरण तेरा जीवन।
संस्कारों का सिंचन दे महकाएं कितने मन उपवन।
सहज-सुधड़ जीवन शैली जीने की कला सिखाए॥
चिरसंचित पुण्यों का फल गुरुओं की कृपा सवाई।
सतत अमंद अनुत्तर पौरुष वर्धमान पुण्याई
पुण्य और पौरुष की युति को आओं शीश झुकाएं॥
तीव्र वेदना में भी देखी समता सहिष्णुता हरदम
तेरा जीवन भक्ति आत्मानुरक्ति का शुभ संगम
प्रेरक दीपशिखा बन तुमने अनगिन दीप जलाए।
अहोभाग्य गुरुवर की सन्निधि में अंतिम उच्छवास लिया।
गुरुवर के श्रीमुख से आराधन गीतों का श्रवण किया
लाखों में विरला मानव ही ऐसा अवसर पाए॥
लय : जनम-जनम का---